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________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी [ १५ उदयापुर त्रिय अवर बिबध मंन राग बणावत, चंदमुषी मिल चलय गवर ऊचै स्वुर गावत । जोवण कोतक जात नागरी ग्यात नवेली, जुथ जुथ जगमगत अंग सोभा अलबेली। आई समाज देषण गवर, कनकजरी भूषण करी, पीछोलाको पाल पर, यंद्रपरी सी ऊतरी ॥ १२२ दोहा- पीछोलै आई प्रगट, हीरां उच्छव हेत । बांकी द्रगनि बिलोकतां, ललता मन हर लेत ॥ १२३ अानन सषियांको अवर, आठमैं (म) तिथ(थी)उजास । बिचे बदन हीरां बिमल, पूरण चंद परकास ।। १२४ प्रथ उदयापुरकी गवर पिछोले प्रागमण दोहा- उदयापूर निकसी गवर, बिधि बिधि भूषण आण। गज वाजां सुभटां गरट. नरभय बजत निसांण ।। १२५ रछयक आये गवरके, जुथप जुथ जवांन । नर नारी घण थट नरष, चल छोड़ा चोगांन ।। १२६ नर नारी सोभत निपट, लाष लोक लेषंत । पीछोलाकै ऊपरै, दुत गवरा देपंत ।। १२७ धजा फरकत दल सघर, बाजा बजैत बिसाल । गवरयां भड हय थट गरट, पीछोलाकी पाल ॥ १२८ कोयल सुर मिल नांयका, गावत गीत गहीर । हय ध्यावत धर थरहरत, बिबध पिलावत बीर ॥१२६ है अथ बात- यण परकार गोरयां पीछोले आवै छ। नायकां बारां जुथ मिलावै छै । ऊचे स्वर गावै छै । ललिता समूहमैं हीरां मनलोभा छै । नागरवेली अलबेली अंग सोभा छै।। हीरांकी सहेलियांको वरणंन- हीरांकी सहेलियां हंसांको डार । अदभुत कवल बदन सोभा अपार । युं कवलकी पांषडीयां एक बरोबर सोहै। वां सहैलियांमै हीरां परागुरूपी मंन मोहै । कीरतियांको झूमको तारामंडलकी सोभा । आफूकी क्यारी पोसाष मन लोभा। केसरियां कसुमल घनंबर पाटंबर नवरंग पोसाष राजै छ । अतर फुलेल केसरि कसतुरी सुगंध छाजै छै । अतरंग बहरंग सषियां अपार छै । पदमणी, चत्रणी सुंदर सुकुमार छै। कनक-प्राभूषण जरी मोती हीर हार छ । यसी सहलीयांकै बिचै हीरां बिराजै छै। मांगें अपछरामैं रंभाकी सोभा। मनलोभा चंदमुषी उडगनमैं चंद्रमाकी सोभा। यण प्रकार हीरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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