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________________ १६ ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी सहलियां उछ्व करै छै । गवरकै वोली दोली घुमर दे दे फिरै छै । गोरिका गीत कोयलस्वर गावँ छै, जोड़का जवांनकी संगत पाऊं प्रो वर चावै छै । हीरांको रूप देष सुरंद मनमै जा है । धन्य छ ऊ पुरुस जु इं नारिने महल में म छ । अथ पीछोले उपर प्रोहितको श्रागमण प्रोहित बचन दोहा - बोल्यो प्रोहित बागमैं, सुभटां तर समाज । उदयपुरकी गणगवर, अब देषांला प्राज ।। १३० बोल्यो प्रोहित वेलियां, बिध विध रंग बषांण । अमल करो दुणा अथग, तुरगां करो पलांण ॥। १३१ आरंभ उछ्व गवर, रसिया बगसीरांम | माजिम मलां भांग मिल, कोनौ कैफ सकांम ॥ १३२ सरस पियाला साथ में, दारू फिरै दुवार । चंकन धुत कैफा चढे, प्रदभुत सुभट अपार ॥ १३३ प्रोहितको सवारी छंद जात ऊधोर- प्रदभुत सुभट अपार, उतंग अमल उदार । ar for वध बांण, एम पनगा करत पलांण ॥ रात प्रोहित रांण, तंग भाल उदार, केसरि तिलक प्रकार || प्राजानबाहु प्रभंग, प्रोपंत कोट अलं (न) ग । चष रत वोपत चंग, पर कंमल फुल प्रसंग || भलहलत किरणां भाग, पट तार पचरंग पाग । पोसा अंग अपार, कलि रंग रंग प्रकार । कट कस्ये पेसकबज, वण षाग ढाल बिरज ॥ बंधे निषंग कंधे षण, कर लीय तीर कबांण । कमर कसंत कटार, धारंत कर चोधार ॥ परचंड उठत पैंड, वण कांन मोती बैंड । श्रथ नीलबिडंग घोडाको वरणन छंद जाते त्रोटक - तीन प्राक्रम यक तुरंगम युं, भण नांम सनील विडंगम यूं । तन पाटि कनोति तीषण यूं, लस दोय मनुं छिब देषण यूं ॥ कर सोहत कुकड कंदम यं, मषतूल रोमावल बंधम यूं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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