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लिए रथ से उतर पड़ी। देखते-देखते नागजी और नागवंती का अग्निदेव की गोद में चिर मिलन हो गया ।
सच्चे प्रेमियों का यह करुणापूर्ण जोवन-उत्सर्ग देख कर महादेव व पार्वती तुष्टमान हुए और उन्होंने उन दोनों को पुनर्जीवित कर दिया। अब दोनों आनंद और उल्लास के साथ जीवन-सुख भोगने लगे । कथा-वैशिष्ट्य
राजस्थानी प्रेम-गाथाओं में नागजी और नागवंती की प्रेम-गाथा का विशिष्ट स्थान है क्योंकि इनकी प्रेम-कहानी इस प्रकार की घटनाओं के साथ गुंफित है जिसमें कि प्रेम, करुणा, सामाजिक व्यवधान और इन्सान को मजबूरी का अद्भुत सम्मिश्रण हमें देखने को मिलता है । नागजी के साथ नागवंती का प्रेम, नागजी के विशिष्ट गुण के कारण परमलदे के माध्यम से होता है और नागवंती अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण नागजी को पूर्ण रूप से अपने में आसक्त कर लेती है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक रीति-रिवाजों और बंधनों से एकाएक ऊपर उठना उनके वश की बात नहीं है। इसलिए वे अपना विवाह भी चुपके से खेत में ही कर लेते हैं। विवाह के पश्चात् वे एकान्त में ही पानंद का उपभोग करते हैं और संशय हो जाने पर समाज का मुकाबला न कर चुप्पी साध लेते हैं। दोनों पात्रों में इतना घनिष्ठ प्रेम होने के बावजूद भी उनका इस प्रकार का व्यवहार उनके हृदय की कमजोरी को ही व्यक्त करता है। लड़को और लड़के के पिता दोनों ही अपनो सन्तान को प्रिय समझते हैं परन्तु यह जानते हुए भी कि नागजी और नागवंती में बहुत गहरा प्रेम है, वे समाज के भय से विचलित होकर उन्हें सहायता पहुंचाने के बजाय व्यवधान ही बनते हैं । अन्त में नागजी की मृत्यु के पश्चात् नागवंतो हाकड़े परिहार के साथ विदा होती है तो नागजी का पिता उस पर व्यंग करके नारी की दुर्बलता पर पुरुष के क्रूर पौरुष का आघात करता हुआ पुत्र-हानि से होने वाले विह्वल हृदय को प्रात्मतोष प्रदान करना चाहता है । यह विडम्बना तत्कालीन समाज में नारी और पुरुष के सम्बन्धों को व्यक्त करती है । व्यंग्यात्मक दोहा इस प्रकार है :
ऊंड पड़वै पैस, पिवसु पंजां मारती । सु माणसीया एह, घूघे लागा धोलउत ।।७४ ॥
पृ० १६२ इसमें कोई संदेह नहीं कि सभी पात्र समाज के बंधन से ऊपर उठने में असमर्थ रहे हैं। परन्तु अन्त में नागवंती ने नागजी के साथ सतो होकर अपने हृदय की कमजोरी पर ही विजय नहीं पाई, वरन् नागजी तक के प्रेम को उसने
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