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नागजी के पास महल में पहुंची। संयोग से इन दोनों को पलंग पर सोता हुआ नागजो के पिता ने देख लिया। क्रुद्ध होकर ज्योंही उसने अपनी तलवार निकाली, नागवंती का पिता जाखड़ा अहीर भी पा पहुंचा और उसने उसका हाथ पकड़ लिया ।
दूसरे दिन नागजी को देश-निकाला दे दिया। नागवंती की सगाई हाकड़े परिहार से की हुई थी, अतः उसे फौरन प्राकर नागवंती से शादी कर लेने की सूचना दी। रवाना होते समय नागजी अपनी भावज से मिले। तब भावज ने उससे कहा कि तीन दिन तक वह बाहर वाले बगीचे में ही ठहरे। उसने दोनों का मिलान कराने का वायदा भी किया। हाकड़ा सूचना मिलते हो फौरन आ पहुंचा। दोनों तरफ विवाह को तैयारियां होने लगों । नागवंतो ने जब परमलदे को मिलने के लिए बुलाया तो वह अपने साथ स्त्री के वेश में नागजो को भी ले आई, यद्यपि सभी लोग चौकस थे कि कहीं वेश बदल कर नागजी यहां न आ जाय ।
नागजी किसी तरह से नागवंती के पास पहुंच गये । नागवंती ने भी इन्हें पहिचान लिया और हथलेवे के बाद रात को बाग में आकर मिलने का वायदा किया। नागजी अपने स्थान पर लौट गए और रात पड़ने पर बगीचे में नागवंती का इंतजार करने लगे। हथलेवे के बाद नागवंती सिर में दर्द होने का बहाना बना कर एकान्त में चली गई और वहां से चुपचाप बगोचे की ओर निकल पड़ी । नागजी काफी देर तक बड़ी उत्सुकता से नागवंती का इन्तजार करते रहे, परन्तु जब नागवंती नहीं पहुंची तो विरह के दारुण दुःख ने उन्हें कटारी खाकर चिर निन्द्रा में सो जाने को मजबूर कर दिया । अनेक विघ्न और बाधाओं को पार करतो हुई, वर्षा में भीगती हुई नागवंती जब नियत स्थान पर पहुंची तो नागजी अपना दुपट्टा अोढ़ कर सोये हुए थे। पहले तो नागवंती ने समझा कि ये रूठ कर सो गये हैं, परन्तु उसने जब नागजी को मरा हुआ पाया तो वह अत्यन्त दुःखित होकर विलाप करने लगी। इतने में नागजी का पिता वहां
आ पहुंचा और यह सारा दृश्य देख कर जाखड़ा अहीर को भी बुलाया । बड़े ही मार्मिक और करुणाजनक परिस्थितियों में लोकलज्जा-वश नागवंती को घर लाया गया ।
प्रभात होने पर बरात रवाना हुई और ज्योंही तालाब के पास पहुंची तो नागजी को चिता जल रही थी । नागवंती ने जब उस दृश्य को देखा तो उसका हृदय उसके वश में न रहा और वह अपने हाथ में नारियल लेकर सती होने के
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