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________________ [ २४ ] बात नागजी नागवन्ती री कथा-सारांश कच्छ के स्वामी जाखड़े अहीर के राज्य में दो तीन वर्ष तक निरन्तर अकाल पड़ा । जब कोई व्यवस्था वहां न बैठ सकी, तब वे बागड़ प्रदेश के राजा धोलवाड़ा के वहां पहुंचे । दोनों में अच्छी मेल-मुलाकात हो गई तथा वे दोनों पगड़ीबदल भाई हो गये । धोलवाड़ा के नागजी नाम का पुत्र था । नौकर-चाकर जब चारों ओर काम में लग जाते तब वह स्वयं एक खेत की रखवाली किया करता था । उसको भावज परमलदे उसका खाना खेत में ही दे पाया करती थी। एक बार वह जाखड़े अहीर की लड़की नागवंती को भी साथ ले गई। रास्ते में परमलदे ने नागवंती से जिद्द किया कि नागजी जब स्नान करके प्रभात में सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो उनके पैरों के चिन्ह कुंकुम से अंकित हो जाते हैं। नागवंती ने इस पर बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि यदि ऐसी बात है तो मैं नागजी से शादी कर लूंगी । बात सही निकली। नागजी भी नागवंती के सौन्दर्य को देख कर मुग्ध हो गये। उनके विवाह में एक अड़चन यह थी कि दोनों के पिता आपस में पगड़ी-बदल भाई बने हुये थे। इसलिये बिना किसी को मालूम हुये उन्होंने खेत में ही विवाह कर लिया। अब वे खेत में ही आनंद से रहने लगे। परन्तु जब खेत काट लिया गया तो सभी को अपने-अपने घर वापिस जाना पड़ा । नागजी आम के वृक्ष के नीचे घोड़े पर सवार होकर विदा होने के लिए तैयार हुए तब नागवंती ने आमः को साक्षी बना कर अपना प्रेम व्यक्त किया तथा प्रेम का निर्वाह करने को दोनों ने अपने हृदय में दृढ़ प्रतिज्ञा की । नागजो को चेष्टाओं को देखकर उसके पिता को संदेह हो गया। अतः वह नागजी को घर से निकलने की इजाजत तक नहीं देता था। विरह की व्याकुलता में नागजो क्षीणकाय होकर बीमार रहने लगे। वैद्य बुलाये गये, परन्तु बीमारी का कुछ भी पता नहीं लगा। नागजी ने एक दोहे में अपने हृदय की बात कहते हुए कीमती मूदड़ी उस वैद्य को दी। तब वैद्य को बात समझ में आई । उधर से नागवंती ने भी अपना कीमती हार उसी वैद्य को दिया। वैद्य ने नागजी की चारपाई वहां से हटवा कर अलग कमरे में लगवा दी जिससे नागवंती मौका निकाल कर नागजी से मिल सके। होली के दिन नागवंती गैहर देखने के बहाने से गढ़ में नागजी से मिलने आई, परन्तु नागजी कहीं दिखाई न दिये । तब एक दासी की सहायता से वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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