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________________ २ बात बगसीरांमजी शोहित होरांकी ऊट प्रचंड अनेक अग्राजें उधरें, धरणहर भादुमास के जारौं धरहरें ।। ६ चहुँ तरफ बणि चौहटां अटा वृतंग प्रखंड | घुमडे जाणें घनघटा दमक छटा छवि-डंड । दमक छटा छबिडंड पताका देषिया, पटा हाट व्यौपार जुहांरां पेषिया । प्रभुषण नर नारि ईसी बिध वोपिया, जाण क सुरपुर लोक इधक छबि जोपिया || ७ पीछोलाको पेषबो मानसरोवर मोज, पांणी भरै छै पदमणी चंदबदनी मुष चोज । चंदबदनी मुष चोज हंसगति चालबो, हाव भाव गावंत हबोलै हालबो ॥ तार जरी पोसाष बीच तन तेहड़ी, इंदपुरी उणियार बिराजै येहडी ॥ ८ बाग अनेक बावड़ी अदभुत फूल अपार, कोयल मोर चकोर पिक जपत भवर गुंजार । जपत भवर गुंजार गुलाबां जूथमें, लता फूल लपटात तरोवर लूथमैं || अंबा चंबा सुगंध बिराजै येहड़ा, जाणे क बंदरावन बसंत छबि जेहड़ा || 2 दोहा - ऊदयापुर राजें ईसो, राणों भींम सुरिंद | कोडी जिणरै कैनैं, चावो लिषमीचंद || १० लिषमीचंद किरति लीयें, दे दे दोलत दाव | भाट गुणीजन भोजिगां, पावै लाष पसाव ।। ११ चैत मास पष चांदर, सातम तिथि सकाज । र धनिसा बसपत अवर, सुक (भ) नक्षत्र पुषराज ।। १२ उण पुल कन्या अवतरी, पूरब लेष प्रताप । चित बृत लिषमीचंद, उछव घणों प्रमाप ॥ १३ छन्द पधरी - उपजी कोडीधज घरि प्राय, लषमोचंद मन उछ्व लगाय । गई निसा भईयो परभात, त दन पंचदुण बीते दिषात ॥ सेठ सबै जोतिस बुलाय, सुभ बीप्र लग्न जोये सुभाय । मिलि गावत कुलतिय. तांन मांन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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