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________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित होराको बीच प्रागण स्यंघासण बणाय, आभूषण कर त्रिये बैठ प्राय अंतर फुलल चिरचंत अग, सुभलियां किनका गोद संग । अदभुत समं मंगल भये आण, बांजंत्र बजे अनेक बांण ।। द्वज बिप्र मंत्र पाहुत दीन, किनका नाम हीरां सु कीन । चणक लेष छबि बीज चंद, बालक मरालकन रूप बंद ।। नागरी अंग सोभा नवीन, कनकनकै केल दोय पान कीन । भई सात बरसमैं बालभाव, बिधि बिधि आभूषण तन बणाव ।। अदभुत लसै छब गवर अंग, पदमरिण कोमल चंपक प्रसंग । ढुलड्यां रमैं संग सषी ढूल, दमकंत अंग जरकस दकूल ।। अग्यातजोवना भाव एम, नह जाणत जोबन आप नेम ।। १४ दोहा- सात बरसांकी समय, गोरी मुगध अग्यात । जोवननै नहै जाणियो, बरण सुणज्यौ बात ॥ १५ कुच ऊपजे काची कली, हिवडै लागौ हाथ ।। मगधा जाण्यो रोग मन, बिसर गई सब बात ॥ १६ कह्यौ आपकी धायकू, कीयो बीरांम अकाज। काल हुतै काची कली, भई सुपारी अाज ॥ १७ धाय वचन दोहा- हीरां चिंता परहरो, ऐ तो कुच ऊपजाय । देषं जाकै दूषसी, थांकै पीड न थाय ।। १८ हीरां चिता परहरी, धाये बचन उर धारि।। सुघड सहेली साथमैं, बिहरत हंस बिहार ॥ १६ बालकलीला बालपरण, बीत्यो पेलत ब्रद।। हीरां तन सूरज हरष, आयो जोबन ईंद ॥ २० १ बात- य तें हीराके सरीर ऊपर सूरजरूपी जोबन पायौ छ। हाव-भाव दरसायो छ । पाछै सूरजपांख जागी छै। मुष शोभा लागी छै । सूरजकी अरणोदै अवरमैं भ्यासी छै। जोबनको अरणोदै मुष ऊपर प्रकासी छै । सूरजकी उदै रषीसुर ध्यान करण लागा छै । जोबनकै उदै ऊर ऊत्तंग जागा छ । सरीरमैं रातिरूपी बालकपणो विलायो छै। दिनरूपी जोबन अायो छै। कवलरूपी हीरांका नेत्र फल्या छै। भव[रकवल फूल जाणकर भल्या छै। हीरां मुगधा ग्यातजोबना कहावे छै, दिल बीच चुपचतराय भावै छै। अब नोंषचोषकी बातां बणावै छै । सनेहकी चुप जगावै छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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