________________
बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांको दोहा- चवदह बरसै अधिक चित, जोबन तणी जिहाज ।
जोवत अब टेढ़ी निजरि, गह चालत गजराज ॥ २१ मधर बचन छबि चंद मष, ऊमगे ऊरज ऊतंग । लीलंबर ढाके ललित, सुभ कंचन-गिर-शृंग ॥ २२ ऊडघन अंबर छबि अधिक, वोपत अंग अनंत । ' मानौं बदल मेघके, कंचनगिर ढाकंत ।। २३ ललित बंक छवि लोयणां, अति चंचल उझकात ।। अंजणतें अटकायिया, अब नतर उड जात ॥ २४
२ बात- अब माइतां व्यावकी होंस कोनी छ । रामेसुर ब्राह्मणनै प्राग्या दीनी छ । रामेसुर अठासुं गजरातनै ध्यायौ छै । अहमदाबाद नगरमैं प्रायौ छ। तदि कपूरचंद सेठ सुणि पायो छ । सेठ प्रापका आदमी बिनाये रामेसुरनैं बुलायौ छ । प्रोहितको घणो सिसटाचार कीनौं छ । टीको बंधाय लीनौं छै । टीको पांचैको सावो थापि दीनौं छै । ब्राह्मणसू व्यावकी ताकीदी कीनी छै । कड़ा मोती सीरोपाव बीदा दीनी छ। उदैपुर आय ब्राह्मण बधाई दीनी छ। लिषमीचंद हीरांको व्यावकी ताकीदी कीनी छै। माणिकचंदकी जान उदैपूर आई छ । कलावत भगतण्यां गावै छै । नेगदार नेग पावै छै । यौ बींदराजा तोरण प्रायो छ । हीरांनै हीरांकी भाभी कहै छै
भाभी वचन दोहा- भाभी इम कहियो बयण, नणद सुणों छो नेम ।
मन कर देषो बींदमुष, तोरण आयो तेम ॥ २५
आभूषण झमकत ऊठी, अंग दमकत पटवोट । बांके द्रगन बिलोकतां, चमक बाणकी चोट ।। २६ पंकजमुष पर लीलपट, गवणत मनु गयंद । मानुं बदल मेघको, चालत ढाक्यौ चंद ।। २७ बनडाको देष्यौ बदन, हीरां भई बिहाल । मानुं होय गइ कुंद मन, मुरझत चंपामाल ।। २८ । दुलही बनडो देषतां, ऊलही उर बिच आग। संगम देषो साहिबो, कीनों हंस र काग ।। २६ होरां मन व्याकुल भई, आयौ लेष अलेष । कनकथालमैं छेद करि, मारी लोहां मेष ।। ३० हीरां मन वाकुल भई, पायो लेष अनंथ । चात्र हीरां चंदसी, केत-राहासो-कथ ॥ ३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org