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बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी
फीकै मन फेरा लीया, अंतर भई उदास ।
ग्रां मीच रोगी श्रवस, पीवत नीम प्रकास ।। ३२
३ बात- तीसरे दिन समठुणी करि जानने विदा कीनी छे । हीरांनै रथ में बठाण केसरी बडारण साथ दीनी छै । जान अहमदाबाद आई छै । कपूरचंद घण हेतसु बधाई छै । प्रटै हीरा घणी बेषातर रहै छै । दुष-सुषकी बात केसरी बडारणिनै कहै छै । " सुणि केसरी, असो षांवेंद पायौ छै । कपूरको भोजन कागनें करायी छै । गधाड़ारै अंग पर चंदन चढायो छै । ग्रंधके आगे दरपण दीषायो छे । गूंगे के आगे रंगराग करायो छे । नागरवेलको पान पसुनें चबायो छे ।” यूं हीरां दन दूभर भरै छै । पीहर ग्राबाकी आतुर करै छै । माणिकचंद कोठी सिधायो है । पीहरयां प्राणों मेल हीरांनै ल्याया छे । सायनी सहेल्यां का झुलरा मिलबाने आया है ।
दोहा- मोद न हीरां कुंद मन, बदन रह्यौ बिलषात ।
सनमुष प्राये सहेलिया, विधि विधि पूछत बात ॥ ३३ हीरां वचन सुष-सज्या समभै नहीं, गोभु बुधि गवार । बिडरूपी मुष दुर्बचन, तिनको मुझ भरतार ॥ ३४ सहेलियां बचन
दोहा - हीरां चिता परहरो, करो मतो मन कुंद ।
गावो मंगल गवरज्या, वा करसी आणंद ॥ ३५
४ बात- हीरां मन में चिंता न कीज्यो । चित लाय र गौरि पूजिजे । आपके पुज्य को दूणो फल थासी । श्राप मनमें चावस्यो जीस्यौ बर प्रासी । दोहा - हीरां तणी सहेलिया, दुरस दिलासा दीन ।
वीसराई उण बात, नागर ग्यात नवीन ॥ ३६
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सी बचन पण विध सुण्यो, चिता भई निचंत । प्रति सुषदायक अंग मैं हीरां मन हुलसंत || ३७ हीरां जोवत मन हरष, मोहत तन सुकमार । गुणसागर गजराज गति, प्रदभुत रूप अपार ॥ ३८ चाहत जोबन अधिक चित, मदन भई ऊनमत । हीरां डोलत हंसगत, सुघड सहेली सथ ॥ ३६ छकी हीरां मदन छ कि, वण बुध सदन वीसेष । चंद बदन मुलकण दमक, रदन तडतकी रेष ॥ ४०
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