SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात बगसोरांमजी प्रोहित हीरांकी ५ वारता- अब हीरां मदको छाकमैं छाक रही छै । मीठीसी वाणी बोल मुषम कही छ । चंदबदनीकै अंग सोभा लागी छै। आपको बदन दरपणमैं दिखावै छ । बिधि बिधि रंग पोसाषां बगावै छै । हीराकै रूपकी समोबड कुण करै । मुनियाको मन डिगै। अपछराको वालो भोलो पडै छै । जोबना छांकमै डोढी निजरी जोवै छै। चंदमुषी हीरां चकोरसषी मोवै छै । सुंदर अलबेली हीरां अतिरूप छाजै छै। कामकंदला क ऊरबसी क रंभादिक राजै छ । सषियांनके विचि हीरांको मुषारबिंद छै-जाणे तारा मंडलमैं पुन्यको चंद छै। केताकै दिन तो हीरांनै सहेलीयां बिलमाई छ । यु करतां बरषा रति पाई छ। अथ हीरांको विरहवर्नन दोहा- कामातुर हीरां कहै, रबि राह बिहरंत । चाहत चातुर अधिकचित, अातुर होत अनंत ।। ४१ हीरां मद आतुर हुई, चित प्रीतमकी चाह ।। विषधर ज्यु चंदन बिना, दिलकी मिटै न दाह ॥ ४२ हीरां चाहै छैल चित, जोबन हंदो जोर । किरणालो चाहै कमल, चाहै चंद चकोर ।। ४३ पुरुष प्रीत हीरां तलफै, दुषद हीयो दाहंत । ऐसे बुंद अाकासमैं, चात्रग मुष चाहंत ।। ४४ हीरां सूती महलमैं, सषीयां तणे समाज । बिरषा ऋति आई विषम, गगन घटा धुन गाज ।। ४५ घणहर जल वरषत घुरत, चमकत बीजल चोज । हीरां रोकी महल मैं, फिर गई सावण फोज ॥ ४६ चमकत बीज अचाणचक, झिझकत उठत जगात । हीरां डरपत महलमैं, थरर थरर थररात ॥ ४७ मदनातुर मेरो मरण, दुसतर वृषा दूसार । कर ऊंचो कर कहत है, हर हर सरजणहार ॥ ४८ सूती सहै सहैलिया, गहरी नीद गरद ।। दरद नही छै दूसरा, दुर्षे जिका दरद ॥ ४६ वरषत घणहर वीषरचौ, उजल्ल भयो प्रवास । उडुगन जुथ अकासमैं, पूरण चंद प्रकास ॥ ५० चमकण लागी चंद्रिका, दमकत षङ्ग दूधार । ऊडगन लगे अगनिसे, विष सम लगत बयार ॥ ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy