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________________ बात बगसीरांमजी मोहित हीरांकी मोर-सबद लागे विषम, कोयल बोलै कराल । चात्रग विष बाणी चवत, होरां रैन बिहाल ।। ५२ घण परकार हीरां अठै, दुभर भरै दिवस । तो लायक सषिया तबै, आसी पीवै अवस ।। ५३ चाहत हीरां छैल चित, उमगत मदन अरोड । भावै मन रसीयो भवर, जोवत अपनी जोड़ ।। ५४ अथ न[२]वरको प्रोहित बकसीरांमजी वरननं ढोला जकै समै हुवा दोहा- अठ निवाई उपरै, राजत बगसीराम । प्रोहित जग मारै प्रगट, कबियां पूरण काम ।। ५५ छंद झमाल- प्रोहित बगसीरांम भमर छै क्रीतको, बरदायक अरिजीतण बाटण वृत्तको । घोडा भड घमसाण क थाटां घेरणो, जुटै नगी समसेर अरिंदा जोरणो ॥ ५६ कुंडलिया- साथ समाजत घण सुभट, अनाजत प्राथांण, पाठे विराजत ईद सो, राजत प्रोहित रांण । राजत प्रोहित रांण, तपोबल रूपको, भड घोडा घमसांण, समोबड भपको। बगडावत बरबंक आंकण वारको, मालेम बगसीरांम चहुँ दिस मारिको ।। ५७ प्रोहित बूंदी परणियो, रसियो बगसीराम, सावण तीजां सासरै, कीनौ आवरण काम । कीनौ प्रावण कांम महोला कोडका' , जंगम षडे अपार लीया भड जोडका । देषि झरोष नारि हरष दरसावियो, आज प्रवीणो कंथ क बंदी आवियौ ॥५८ तीज तणें उछव तटै बांचौं घणौं बषाण, निरभै गढ बूंदी नगर, राजै हाडा रांण । राजै हाडा रांण अरिंदां रीसका, अहंकार दुज हणे तमोगुण ईसका। १. बूंदी नगरके पास कोडक्या नामक ग्राम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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