SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी कबियां लाष पसाव क छंदा कारणां, मरदां हंदा मरदै क दैणा मारणां ।।५६ अथ बूंदी बरणन दोहा- निरमल गढ बूंदी नगर, झुक परबत चहुँ ओर । अदभुत छबि चहुँ तरफ अति, मीठा बोलत मोर ॥ ६० छंद जाते उधोर- अति मीठा बोलत्त मोर, सुभ करत्त कोयेल सोर । बण बिबध बूंदीय बाग, लत लूंब तरवर लाग ।। छबि नंदी सागर छंद, उलसंत जल अरबिंद । वोपत नीर अथाह, गवणंत क छिव थाह । तरकंत नीर तरंग, सुर घोष दादुर संग । तट बाग छबि उत्तंग, ब्रछि बिबिधि बौरंग ।। अदभूत फूल अपार, जुथ भवर करत गुंजार । सरसंत फूल सूगंध, मिलि पवन सीतल मंद ॥ मंजरी फलं दर मोर, चलबौल करित चकोर । अत्यादि षग, धुनि अंग, प्रति फूल फूल प्रसंग ॥ बण होद सागर ब्रद, मिलि नीर मधु मकरंद । जल भरत नारीह जुह, सिंगार हार समूह ।। हालंत हंस हुलास, पद कनक नूपर पास ।। मष चंद सोभत मंज, कर फूल लोचन कंज ॥ सोहंत कनक सिंगार, पोसाष चीर अपार । वण हीर हार बिहार, रुचि निपट छबि नर नारि ।। बनखंड अबर बिराज, मिल सूर स्यंह समाज । प्रो घाट परबत अंग, उत्तंग श्रंग अभंग ॥ पलकंत झरना पाल, नीझरत जल परनाल । अदभूत गिरंद अनेक, ऊं बिचें परबत येक ॥ ६१ दोहा- उण गिरवर आयकै, केहर तंडव कीन ।। घणहर मांनु इंद्रधन, भादव जलधर मीन ॥ ६२ माणत पदमणि महलमै, रशियो बगसीराम । सुष सज्यामैं सांभली, केहर तंडव ताम ॥ ६३ सुष सज्या तंडव सुणी, मोहित घ0 प्रकार। आय बणी, रमस्यां अबै, सिंघां तणी शिकार ।। ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy