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बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी
[९ छंद पधड़ी- भयो प्रातकाल परकास भांन, बन पंषी जन बोलत्त बांण ।
प्रोहित बोल्यो जब ईण प्रकार, सुरमां क थाट चढस्यां सिकार ॥ ताता अपार प्राकृम तुरंग, कूदंत छवि जावत कूरंग । चढि चले प्रौहित रांण चंग, अत बल बीर जोधार अंग ॥ बण सुभट थाट हैमर बणाये, आषेट रमण कीनी उपाये । घमसाण चले घण थाट घेर, बाजंत घाव नीसारण भेर । चमकत सेल पाषर प्रचंड, दमकत ढाल नीसाण दंड। ध्रमकत घोड षुर धरण धज, रमकंत गगन मग चढीये रज ।। बनषंड एक उद्यान बाग, बन सूर स्यंघ सांबर ब्रजाग ।
झुक झोम तरोवर घेरि झंड, पेषियो सिंघ प्रोहित प्रचंड ॥ ६५ सोरठा- केहर येक कराल, बनषडमै देष्यो विहद ।
जगमग पाष्या ज्वाल, पूछ कीया सिर ऊपरें ।। ६६ घोडा चड घमसांण, पाय थया सहै येकठा ।।
बिधि बिधि बोलत बांण, बतलाईजै बाघनै ।। ६७ दोहा- केहर बतलायो कना, थट धोडा भड थाट।
___ बतलायो अब बाधनें, नांगी षाग निराट ।। ६८ छन्द पधडो- बतलायो ईम केहरि बडाल, कोप्यो क आय जमजाल काल ।
जग्यो क सोर ढिग अगन जोम, घडहडो धीरत घण अगन धोम ॥ दगी क तोप वुदडा दोज, विलगी क सो घणघर कडक बीज । छ ट्यौ क बांन अरजन छोह, मंडल तारा टूटयौ समोह ।। दव्यौ क पुछधार सरप हुठ, जग्यौ क नेत्र शिव जटाजुठ । जोगंद अषाडै पर जगाय, यण भांति स्यंघ सनमुष प्राय ।। हलकार प्रोहित कोप कीन, ललकार म्यांन तरवार लीन । पेष्यो क गज धरै अनंङ पष, धायो क बाज चीडकली यधक ॥ अति जोम पीरोहत कर अपार, दमकंत तडत बाई दुधार ।
कटयौ क शीस केहरि कराल, फटचौ क मांनु तरबूज फाल ।। ६६ दोहा- प्रोहित कीनो जग प्रगट, सिंघां तणी सिकार ।
बूंदी गढ़ पायो विहसि, सरणां ईसा धार ॥ ७० अतरें अदभत आबियौ, तीजा तणें तिवार । अलबेली आभूषणां, निकसी कर कर नार ।। ७१ सावण घणौं सिरावियो, रसीयो बगसीरांम। निरभ गढ़ बूंदी नगर, तीज महोला तांम ।। ७२
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