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________________ १० ] बात बगसोरांमजी प्रोहित होरांको कर जोडे येकण कह्यौ, रसीया प्रोहित रांण । उदिय्यापुरकी गणगवर, बाचीजै बाषाण ॥ ७३ प्रोहित वचन प्रोहित ईण बिधि पूछियौ, बेहद गवर बषांण । राय भाण चारण रसक, बोल्यौ तब यण बांण ।। ७४ चारण बचन दोहा- जगमग ग्राभूषण जडे, भांमण अति रसभीन । उदयापूरमैं रूप अति, नागर ग्यात नबीन ॥ ७५ ऐक ऐकतै आगली, निपट सलूणी नारि । उदयापुरमै सब यसी, अपछरके ऊणियार ।। ७६ चहु तरफा डगर अचल, कीनां सिखर कंगूर । बाक बिचै सागर यसो, पीछोला जलपूर ।। ७७ प्रगट महल जलतीर पर, सोहत सहर समाज । गवर अग्र मिल सुभटगण, बण ठण षेलत बाज ।। ७२ प्रोहित बचन दोहा- बोल्यो प्रोहित बेलिया, सुणज्यो सब सिरदार । ऊदयापुर चाला प्रबें, बायक कह्यौ बिचार ॥ ७६ ६ बात- प्रोहित बगसीरांमजी सु साथिकांको बचन-अब प्रोहितजीनै साथका कहै छै । ऐक अरज सुणीजै । चैन बुझाकड चांदसिंघजीनै बुझ लीजै । चैनस्बंध बुझाकड चांदस्यंघजीको वचन दोहा- चैन बुझाकड मुष बचन, प्रोहित पुछे प्रमाण । उदयापुर चालो अवस, देषांला र दीवाण ॥ ८० चांदस्यंघ बोल्यो बचन, प्रोहित सुंण प्रकार । उदयापुरकी गणगवर, परषांला नर नार ।। ८१ ऊदयापुर चढियो अवस, बिबधि निसांण बजाय । गवरयां देखण बागमैं, ऊतरीयो छै प्राय ।। ८२ वण सहेली वाडियां, बिध बिध फूल बणाय । ऊठ प्रोहित ऊतरयौ, उदयापुरमैं प्राय ॥ ८३ चन्द्रायणो- ऊदयापुरमैं पायक प्रोहित ये रसो, घण थट भडिजा सुभट समंदा घेरसो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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