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________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी भवैराईका पेच मगेज भ्रमाडिया, बिध ऊतरियो प्राय सहैली बाडियां ॥ ८४ कुंडलिया- बणी बिछायत बाडियां जाजमैं गिलम जुहार, आप दूलीचां उपर अदभुत षुलै अपार । अदभुत षुलै अपार दूलीचा वोपिया, जाणं क पचरंग फूल अपारा जोपिया । कीमषाप तकिया कसमंदा खूब है, संजीवणकी जडी क जोत सबूब है ॥ ८५ उण गदीक ऊपरै राजत बगसीरांम, मिल घण थट दोहूँ मिसल कीनां सुभट सकाम । कीनां सूभट सकाम दुसासण क्रोधका, जग जीवण.है भीम गदाधर जोधका । जबर बीर छाजंत अरिंदा जालका, किरमाला घमचाल समोबड कालका ।। ८६ राजत बगसीरांमकै अभंग सुभाट]पट येम, छक छायल भुजबलमछर जबरायेलस्यंध जेम । जबरायेलस्यंघ जेम भभका सोरका, जबरायेल कर षोज भुजंगम जोरका । भागणकी पणव्रत उपासी भांणका, मोजां [जों] मंन महरावण क रावण मारका ।। ८७ दोहा- सुभटा जसा समाजमैं, राजैस प्रोहित-रांण । बणीं सहैली बाडिया, बांबूं कर बाषांण ॥ ८८ अथ सहैलियां बाडीको बर्णन ७ बात-बिध बिध सहेली बाडियां छाजे छ । अांबा, खजूरि, केला, नारेल, राजे छ। पिसता, छ हारा, दाष, बिदामा समैकत की छै। चंपा, मरवा, मोगरा, जुही, जाये केतकी छ। बैवलसरी, नींबू, नारंगी, झंबीरी जह छ। रेशमी, गलाब, गैंद, केवड़ा, समहै छै । और लीलडंबर तरोवर पर बेलिडियां लंम रहै छै । सीतल सुगंध मंद तीन प्रकारको पोंन बहै छै । तरबेली सुगंध फूल मंजुरी फूलै छै। ज्यांक उपर भवर गुंजार सबद झुलै छै । बाग बन कुंजमै मयूर छत्र मंडै छै । नाटक निरतक ऊचै सुर तंडै छै । अंबा डाल कोयेलियां टहुका कर छ । मोहणीं सी बाणी बोल मन हरै छ । चकवा, कपोत, कीर, षग धुन सुर्णे छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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