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बात बगसीरामजी मोहित होरांकी
मां कांमदेवकी पोसाल बालक भरणै छै । अनेक होद, सरोवर, दादर, मीन जल भूलै छै । तापैं कमोद कवल फूलै छै । सुगंध पर सोहै छै । भमर मन मोहै छै । उण बाडी मैं अनेक महिल चत्रसाली छै । जरीका पडदा भरोषा गोष जाली छै । ऊ बाडियां मैं प्रोहित माजुम कसुंमां करै छै । साथमें दारु दुवाराका प्याला फिरै छै । दूणां श्रमल चोगणां चढावै छै । ऊगाव कर सोगुणां जोसमें आवे छे । तीरमदान बंदुकची हृदफां उतारै छै । बालबंधी कोडी पर तोर गोली मारै छै ।
श्रथ रजपूतांका बषारण
दोहा - बल-पायक रणषेत में, बरदायक मजबूत |
राजा बगसीरांमकै, पासि असा रजपूत ॥ ८६
बात- जिके रजपूत कैसा, जंगमैं मजबूत, प्रथीराजका सामंत जैसा, आकासकी बीज, कना जमराजकी षीज, आपका सीस पर बेलै, पडता आसमानकूं भेलै । केहरका प्राक्रम सोरका भभका वाराहका जोर, जलालियका धका, कालीका कलस, सतीका नारेल, सेरु का बेल, नंगी समसेर विजै जैतका प्यासी छै ती प्रावधुका अभ्यासी । जोधविद्याका सागर, रजपूतीका आागर । दातासुं दातार, भुझांसूं झुकार । कीरतका कोट रजपूत कहिये, बगसीरांमका सुभट साइ चहिये |
दोहा- सोहै जेहा जेहा सुभट, तेहा तेहा सिरदार !
वीरभद्र रजपूत बिध, प्रोहित रुद्रप्रकार ।। ६० प्रथ प्रोहितजीको वरणंन
८ वात- प्रोहित पण कैसा, दातार करण जैसा करताका बीद प्रथी पर कहावै, षगांकी पैराते षावै र पलावै । भीमका धमचाल, 1 बियांका काल | अरजुनका बांण, दुरज्यौधनका माण । रसबिलासका यंद, वचनका हरचंद । समेरका भार, कूमेरका भंडार | अनेक षानदानवला घूंकला उडावै छै, उदैपुरका बागमैं वारां बजावै छै ।
दोहा - व सहेली बाडियां, घोडा भड घमसांग ।
धो उछव रमैं, राजै प्रोहित रांण ॥ ६१ उदयापुरपति ईंद सो, निरभय सुष नर नारि । अब आई है गणगवरे, उछ्व नगर अपार ॥ ६२ हीरांके प्रायो हरष, सबियां तर समाज । अलबेलि ऊचारीयो, ऊछैव करस्यां प्राज ॥ ६३
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