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________________ • बात बगसीरामजी प्रोहित होरांक [ ४७ बचन अफटा बहै गया, अब झुठो अवसांण । ऊठ्या कर मन क्रोध अत, रूठ्यौ प्रोहित रांण ।। ३५४ प्रोहित बचन रुप गरबकी राजवणि, मत मेलज्यौ मांण । ज्येज नहीं अब जावस्यां, पर घर करे पयाण ॥ ३५५ सामां भेटण सासरै, हरषत मन हुलसात । गढ बूंदी करस्यां गमण, रहां नहीं इक रात ।। ३५६ रहस्यां बूंदी सासरै, अब चालांला आज । मुझ बिणा यण महलमैं, रहज्यौ नीकां राज ॥ ३५७ ऊठ चाल्यौ घर प्रांगण, रूठयौ प्रोहित रांण । नहै बोलां इण नारिसं, अब ठाकूरकी प्राण ॥ ३५८ पीतम कारण पदमणी, ऊठ गमणी प्राधीन । कर गहै फैटो कमरको, लोयण जल भर लीन ॥ ३५६ हीरां बचन मैं नु घणी विमुढ मंन, आप गरीबनिवाज । त्यागीजै तकसीरनु, रसिया बालिम राज ।। ३६० बाटौ तोनै जीभड़ी, कुटल बचन कहाय । रीस निवारो राजबी, मो पर कर मयाह ॥ ३६१ मांनै तागो बालिमा, प्रांण तण प्याराह। . कंथ निवारो कोधनै, नहै करस्यां वाराह ।। ३६२ मांनोजी रसिया भमर, जपु तिहारां जाप । प्रीतम मन हठ परहरो, अरज सुणीजो आप ॥ ३६३ लोभी देषौ लोयेणा, एमी नजरि भर ऐम । मुष बांणी बोलै मधुर, प्रीतम करि हित प्रेम ।। ३६४ लाषां बातां लाडला, मांणो महिल मनाय । हिवड़े नवसर हार ज्यूं, लेस्यां कंठ लगाय ।। ३६५ प्रोहित बचन कर फैटो तजि कमरको, लपट मती हट लोय । रीस चढी छै राजवणि, मत बतलावे मोय ॥ ३६६ हीरा बचन बतलास्यां म्हे बालमां, आप बिनां कुण वोर । प्राण अवारू पीव पर, जिदा कसंन जोर ।। ३६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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