SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ ] बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी राजकीयो छै रुसणो, ऊर मो दहत कदोत । आप न मांनो मो अरज, मरू कटारी मोत || ३६८ केसर बचन श्राप तणी प्राधीनता, हीरां हाजर होय । जोवो इण पर शुभ नजरि, करो मती हठ कोय ॥ ३६६ राजैषांवंद सरस, नाजक घणरा नेम । प्रांण दुषी प्यारी तणी, कीजै प्रति हठ केम ।। ३७० चाल विलूंबी इधक चित, वेलत रोवत चांण । लपटावो गल लाडली, रसिया प्रोहित रांण ॥। ३७१ मीठा बोलो बचन मुष, हीरां पर कर हेत । महलां जोयण माणज्यौ, सेझां पेम समेत ।। ३७२ प्रोहित बचन बडारण केसरी, कथन पुराण कहंत । लछण बाद लुगाईयां, अकलि य[प]छे ऊपजंत ॥ ३७३ - हीरां बचन करो षमो हीरां कहै, पीतम करजै प्यार । गां बिलूंमी पदमणी, आष्यां नीर अपार ॥ ३७४ प्रोहित हीरां कर पकड़, लीनी ऊर लपटाय । श्रत देषत आधीनता, मनकी रीस मिटाय || ३७५ प्रोहित बचन प्रोहित कहियो पदमणी, सुण लीज्यौ शुकमार । प्यारी थांका बचन पर, ऊपजी रीस अपार ॥ ३७६ हो बचन दोहा - आप बड़ा छो ईसवर, मैं छु बुधि गवार । ऐधुला मांणो अब, पीतम सेजां प्यार || ३७७ केसरी बचन दंपति बिलसो सुष मदन, तन की मेटो ताप । रंगमहलमै राजबी, श्रबै पधारो आप || ३७८ प्यारी पीतम त पर, चालो महिल सुचंग | रति मिंदर सुंदर सकै, औपत मनो अभंग || ३७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy