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बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी
राजकीयो छै रुसणो, ऊर मो दहत कदोत ।
आप न मांनो मो अरज, मरू कटारी मोत || ३६८ केसर बचन
श्राप तणी प्राधीनता, हीरां हाजर होय ।
जोवो इण पर शुभ नजरि, करो मती हठ कोय ॥ ३६६ राजैषांवंद सरस, नाजक घणरा नेम ।
प्रांण दुषी प्यारी तणी, कीजै प्रति हठ केम ।। ३७० चाल विलूंबी इधक चित, वेलत रोवत चांण । लपटावो गल लाडली, रसिया प्रोहित रांण ॥। ३७१ मीठा बोलो बचन मुष, हीरां पर कर हेत । महलां जोयण माणज्यौ, सेझां पेम समेत ।। ३७२ प्रोहित बचन
बडारण केसरी, कथन पुराण कहंत ।
लछण बाद लुगाईयां, अकलि य[प]छे ऊपजंत ॥ ३७३ - हीरां बचन
करो षमो हीरां कहै, पीतम करजै प्यार ।
गां बिलूंमी पदमणी, आष्यां नीर अपार ॥ ३७४ प्रोहित हीरां कर पकड़, लीनी ऊर लपटाय । श्रत देषत आधीनता, मनकी रीस मिटाय || ३७५ प्रोहित बचन
प्रोहित कहियो पदमणी, सुण लीज्यौ शुकमार । प्यारी थांका बचन पर, ऊपजी रीस अपार ॥ ३७६ हो बचन दोहा - आप बड़ा छो ईसवर, मैं छु बुधि गवार । ऐधुला मांणो अब, पीतम सेजां प्यार || ३७७ केसरी बचन
दंपति बिलसो सुष मदन, तन की मेटो ताप । रंगमहलमै राजबी, श्रबै पधारो आप || ३७८ प्यारी पीतम त पर, चालो महिल सुचंग | रति मिंदर सुंदर सकै, औपत मनो अभंग || ३७६
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