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________________ १०८] बात रीसालूरी हरिया' हुयजो वालमा', ज्यू वाडीके सिंग बे। मो नगुणीकै कारण, करक' वेसांण्या काग बे ।। १८७१० [रावत भिडियां वांकडा, ताहरा हाथ सलूर बे। मो निगुणीक कारणे, काया कोधी दूर बे।। १८८ हरीयां वागारां राजवी, फूला हंदा हार बे। तोतो छेती बहु पडी, कूडै इण संसार बे ॥ १८९ बालापणरी प्रीतडी, पूरण कीधी पीर बे। लागा हाथ छयलका, हिव तोसूं हुवो सीर बे ।। १६० कारीगर किरतारका, छयल किया तसू हाथे बे। जीहां पीउं थांरी छांहडी, तीहां पीउं माहरो साथ बे ।। १६१ मो सरषी निगरणी तणे, कारण काया छोड ये। हाभागणी जीवती, रहीय करडका मोर बै ।। १६२ फिट फिट कुबधी सज्जनां, कोनो नहो मूझ साथ बे। षबर न का मूझनै पडी, तो मीलती भर बाथ बे ॥ १९३ रस रमतां मैहलां विपे(षे) चोपड पासा सार बे। ते छोडी धर पाथरथा, सीस धड जूवा वारे बे॥ १६४ प्रेम-गहिली हथइ, मांहरा पीउरे संग बे। यूं नहीं जांण्यौ हठमला, तो करती रंगमे भंग बे ।। १६५ जांण न पाई हठमला, नवि पूगो मूझ डाव बे। जे हुं मारयो जांगती, तो करती कटारयां धाव बे ।। १६६ रूडा राजिद जांणज्यौ, मूझने चूक न कोय बे । जे हु जाणती मारीयौ, तौ हुँ करती दोय बे ॥ १६७ १. ख. हठीया। ग. हरीना। घ. ऊ. हरीया। २. ख. कु. होज्यो। ग. होऐ। घ. होयो। ३. ख. ग. घ. ङ. बलहा। ४. ख. ज्यु । ग. घ. ङ. ज्यु। ५. ख. वाडीकेरा। ग. घ. वाडीको। ङ. वाडीकै । ६. ख. साग । ग, घ संग। ङ. वाग। ७. ख. ग. नोगुणीक । घ. मगणक । ङ. निगणीके । ८. ख. क्रमे । ग. करंक । घ. करांक । ङ. करके। ६. ख. बेसारया। ग. वसाया। घ. बैठा । ऊ बेसारचौ। १०. इस दूल्हे के पहले एक और निम्न दूहा ख. प्रति में मिलता है काला मुहके कागले, उड उड परहो जाय बे। माहरा प्रीउको पासली, हम देषत मत षायबे ॥ ४४ [-]. कोष्ठान्तर्गत दूहे ख. ग. घ. हु. प्रतियों में अनुपलब्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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