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________________ बात रीसालूरी [ १०६ व्याप्यारी ज्यू वटाउडा, वालद ज्यूविणजार बे। लदीयां लोथ पड़ी रही, कागा कुचरे षार बे ॥ १९८ पांना फलां महिला, सीस रषंगा सोड बे। के नाराज्य साजनां, लहु मूझ होयडै जोड बे ॥ १६६ अब बेगा मिलज्यौ हठमला, भाज्यूं मांहरा देह बे। ज्यां हठमल ज्यां हु षरी, साचो जांणज्यौ नेह बे ।। २००] ५२. वार्ता-इसा विरहरा दूहा कह्या । मनरा मनमे समझ कीया। पिण केहणकी वात नही बणै। इसो विचारने रांणो सामीजीने कहो - सांमीजी माहाराज ! पर उपगार रो काम छै । हिव हका धर्म छै- प्रो मडो पडीयो छ, तिणनै अगन भलो करणो जोग छ। तसांमीजी वात मानी। वात मानणे रोहिमे लकडा भेला कीया । चारे षाई दे नै वहरवी माहे पातसाहरी बूथ मेली। तठे सामीजी कहै - आ तो हींदु तो नहि दीसै छै; ए तो तुरक दिसै छै । त? रांणी दुहो कहै छ ।' दहा- मांणस देह विडांणीया, क्यां हींद मशलमांन बे। प्राग जलाया कायने, हींदु-धर्म निदान बे।। २०१२ [५३. वार्ता-तठे चहमे बूथ मेले ने उपरे चेजो करने कंसघससू आग लगाई । झालो-झाल हुई। तठे सांमीजीने वाणी कहै - माहाराज ! इण तलावसू पांणी री तुंबी भर ल्यावो; ज्यं मडाने भीटीया छ, सो छाटो लेवा ने अाघा चालां । तठे सांमीजी तुंबी लेने तलाव कांनी गया ने लारे रांणी कहै १. ५२वीं वार्ता निम्न प्रतियों में निम्न रूप में है ख. वारता-इसो कहे रांणी घणी झुरणा कीधा। पछे प्रतीतनु केहे-वनषंड माहेसु लकडा ल्याव्यो, ज्युं प्रापे इणनु दागद्यां । जदी जोगी वनमे फीरने लकडा ल्यायो।। ग. ऐसो रांणी कह्यो । घणा झुरणा कीधा । पछै अतीतने कह्यौ–लाकडा लावो. जौ प्रापे प्रणीनै दागदां । तदि अतीत लाकडा ल्यायो । घ. में उक्त अंश ही नहीं है। ङ इसो राणी कहै न झूरणा घणा झूरीया छ । पर्छ प्रतीतनै कयो--सूका लाकडा वनमाहिथी ल्यायौ। २. ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में यह दूहा नहीं है। [-]. ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में ५३, ५४ तथा ५५वीं वार्तामों के गद्य-पद्यांशों के स्थान पर केवल यही गद्यांश उपलब्ध है ख. चेह चुणने रांणी माहे बेठी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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