SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० । बात रीसालूरी दहा- हठमल मोलज्यो साहिबा, बहला म रहज्यौ दूर बे। पाई अगन प्रजालने, लहज्यौ हित भरपूर बे ।। २०२ प्रगन सरण ताहरो करू', माहरो पीउ मोलाय बे । साहिब साषी मांहरो, साथ दीज्यौ संभाय बे ।। २०३ ५४. वार्ता-इसा दुहा कहिने परमेसररो नाम ले ने 'हो हठमल ! थांरो साथ बेगा हुयज्यौ, इसो कहीने चहीमे पडी, राम सरण हुई। तठे सांमीजी सीनांन कर ने तुंबी भरने पाछा आया । तठे राणीनै चेहमे बलती दीठी। तठे सांमीजी कहै-- दूहा- रंडी राजी ना हुई, कुंमर थकी कर कूड बे। मे विदनामी रच गई, नार देई तुझ धूड बे ।। २०४ सत कीधो ने साह बण, हिंदु-तुरक समांन बे। जस षाटी जालमतरणौ, जलण धरचौ ए प्रांण बे ।। २०५ रंडी भंडी ते करी, मांण मूकायो मोह बे । षार दीयौ मूझ छातीयां, भली करी मुझ दोह बे।। २०६ तो सरसी नार तणा, षेलतरणा मन खेल बे। प्राणतणा पासा ढल्या, में मत कोधा मेल बे ॥ २०७ कांमण कारीगरतणी, कामरण केथ पडेह बे। सात कीयो सासें गई, भलो दिषायो नैह बे ॥ २०६ साली मो मन माहरी, भंडी रांड भडारण बे। तो सरसी वाली वरस, देषी लोह थडांह बै ॥ २०६ ५५ वार्ता--इसा दुहा सांमीजी रांणोने वलतीने सूणाया; पिण ज्यां राज्यांस मन वेधीया तेके दूजी तथ न जाण । हिव रांणी हठमल लारे सत की धो] सो बल भस्म हुई । सामीजीने दो वडा साल हुवा । सो घणो वोषास करवा लागा, पिण गरज काई सरे नहि । अगन लगाई । राणीइ हठमल पुठे सत कोधो। प्रतीत रोवतो पाछो गयो-जा रंडी, तेरा बुरा हुइंगा . ग, आग ल्यायौ । लाकडा सलगाया नै राणी माहे बेठी। लाकडा लगाया, हठीमल साथै सत कोधो। घ. तदी रांणी छाती-माया कुट नै हठमल वांस सत कीधौ। इ. पछै चेहै चुगी में रांणी चेहै माहै बैठो हठमल पातसाह साथै बली, सत कीधो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy