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बात रीसालूरी दूहा- कुड कपटनी कोथली, रमती पर पूरषांह ।
लजा संकण जा(ता) नही, प्रीतम मन पिछतांह ।। ३१४ जगमे नारि रूवडि, वसत करी जगनाथ बे। पिण साचे मन चाल बे, तो पिउं थाय सनाथ बे ।। ३१५ मंगल जारी मागरण, चीला छोड कुचीन बे।। चाले मन पिउ नहि गिरणे, ज्यू मद मानो(तो)फील बे ।। ३१६ पिण तो सरषो बालही, जो नवि मिलती मोह बे। तो हु प्रतीत न जाणतो, नारि तणो अंदोह बे ॥ ३१७
वारता- इसो सुणि रसालुजी राजी हुआ। रांणीरे घणा ग्रहणा, वेस-वाया कराया। होवे रात दीन सुषे भोगवे छ ।
दुहो- मो मन लागो साहोबा, तो मन मो मन लग ।
ज्यु लुण घोलुधो पांणीयां, ज्यु पाणी लुण बोलग ॥ ७३ वारता- इसी रीतसुसुष-वीलास करतां मास पंच वतीत हुआ। तदी रसालुइं राजा भोज पासे मीष मांगी।
ग. वात- रसालुन म्हैलांमै डेरा दीवाड्या । तदी रीसालु म्हैलोमै सुता छ। राणी प्राई । राणीने कांई कहै
रीसालुवाक्यं दूहा- सरवर पाव पषालतां, तेरी पायल क्यु सही जाय बे । हूँ तो पुछु गोरडी, तु क्यु रयण विहाय बे ॥ ५८
तदी रांणी काई कहै वूहा- सरवर पाव पषालतां, मेरी पायल क्यु कसी जाय बे ।
अंबर तारा जोबसां, ज्यो मो रण वोहाय बे ॥ ५६ वात- तदी रीसालु राजी हूवो । तदी रांणीने ग्रहणो दीधौ। जडावरो सीसफुल, जडावरा प्रांकोटा बीदी सहेत दोधी । सोनारी धड, रतनां रो हार, नवसरो वरहार, चंद्रसो उजलो चंद्रहार, माला सोनारी, दोय हाथ रा वाजुबंध, हाथरी बीटी, जडावजडी, नगजड्यां हीराकणीरी वीटी, जडावरी जेहड, दोई पायल, दोय पग पान मय मेषला, हजार पांचसैरा दीधा । ऐस्यो पंच फुल्यो गहणो कुंवर रोसालुजीरी राणीने दोधो । गैहणा-गांठा घडाव्या। राजाजी राजी हवा, वधाई वांटी । घणा भोग-वीलास दन पनरै रह्या। एक दिनकै सम्य राजा राणीसू कह्यौ-माने सोष देवाडो।
. वारता- रोसालुनै महोला माहै डेरो दोरायो । रोसालू महिला माहै सुता छ। तद रांणी प्राय रीसालून कांइ कहै छै
दहा- सरब याय पषांलतां, तेरी पायल षीस जाय बै।
हुं तोने पूछू गोरडी, तौन क्यू कर रेण विहाव वै ॥ ६६
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