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बात रोसालूरी
[१३३ गवीज रह्या छै । इतरै रात्र पूहर सवा गई । त, कुंवरजी मेहलां दाषल हुवा। इतरे कुवरी सिणगार कीया कुवरजो पासै पाई। दूहा- काली कांठल भलकीया, बीजलीयां गयरणेय बे।
चमकती मन मोहीयो, कच छाको देय बे ।। ३०६ पिंडस पतल कटि करल, केल नमावे अंग बे । लोयण तीषां ठग भर, प्राई मेहल पंतंग बे।। ३१० जाणे मांन सरोवरे, मोलप्यो हंस विसाल बे। सेझां पाई सुंदरी, छुटो गज छंछाल बे ॥ ३११ पूरो पूनम जेहवो, मष विच चूंपे जडाव बे ।
कालो वादल कोर पर, वोज षोवे जिझेकाव बे ॥ ३१२ ८६. वार्ता-इण भात सू कूवरी सीणगार सझनें कुवरजी पासै प्राय ने सरदो कर ने हाथ जोडने ऊभी रही । तठे रांणीरो रूप, मटक-चटक देषने मनमे कुवरजी घणा राजी हुवा। दूहा- जि नर रूपे रूवडा, ते नर निगुण न हुवंत बे।
जी मण भोज कुमारका, मोह्यौ मन तन कंत बे ॥ ३१३ ८७. वार्ता-इसो कुवरजी वीचारने रांणीने घणी राजी कीवी । घणा कवित्त, दूहा, गाहा करीने माहे-मांहि चरचा कीवी । तठे कुवरजी रांणीनै कहैसाबास, थांहरो कोल भलो उजलो दिषायो; म्हे तो मांरा मनमे जांणता थालगायांरो समाधाका पालम कहीजे, तिके लूगाया छ ।
ख. वारता--रसालुजीए इण तरेसु महीलां दाखल हुा । सघला साथसु मील्या । नोजर-नीछरावला हुई । इम करतां च्यार पोहर दोन वतीत हुो । संध्याई रंगमहीलमे जाए पोढीया। रांणी पोण स्नान, मजन कर भला कपडा पेहरोया। सर्व प्राभुषण पहीर वाल-वाल मोती सार, घणा अंतर-फुलेल ढोलीया । कपडा सघला इकगरकाव (इक रंग का) कीया। इण भांत घणा उछाहसुसुरापानरी सुराही लोयां रात्र घडी दोय गया, महीलां पाई । रसालु जीम लीया । घणा उछाह कीया। वात वीगत मन-तनरी कीधी, सुष-वीलास कीया, लयलीन हुआ । तीण समीए रसालुजी रांणी प्रते काइ कहे छे
रसालुवाक्यं दूहा- सर वर पाय पषालतां, तेरी पायडली षस जाय बे। हु थने पुछु गोरडी, थने क्यु कर रयण वोहाय बे।। ७१
रांणीवाक्यं सर वर पाय पषालतां, मोरी पायलडी षस जाय बे । अंबर तारा गीणतां थकां, यु मोकु रयण वीहाय बे ।। ७२
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