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________________ बात रीसालूरी [१३५ रांणीवाक्यं सूकुलीणी नारि तिका, पति संग रहै अछेह बे। जीवतडां नहि वीसरे, न वलगाई नेह बे ॥ ३१८ ८८. वार्ता-इण भातसू माहौ-माहिं दुहा कहिनै राजि हुवा। नवा नेह लागा, विरह-विछोहा भागा। पेहरी केसरीयां वागां, मिट गया दुषना दागा, चोवा-चंदन लागा। इण भातसू माहौ-मांहै संसाररा सूष विलासतां घणा मास हुवा । हिवै एक दिनरे समै कुंवरजी राजाजी कनै सीष मांगी । तठे राजा भोजजी घणा दुषो हुवा ।* दूहा- राज सरीषा प्राहुणा, वले न पावै कोय बे। मिलीया दुष गलीया सहू, जूगत थई सहु जोह बे ॥ ३१६१ अंग उमाहो कुवरजो, कोयौ कोसी वीस आज बे।। राज सला धारी धरण, सो कहि जंबो काज बे ॥ ३२०२ कुवरजीवाक्यं बारै वरस वनवास रा, भोगवीया माहाराज बे। अब घर जइये वचनथी, सोल वरस धर साझ बे ॥ ३२१३ ___ A८६. वार्ता-इसा समाचार सूणनें भोजजी टीको अोझणी सारो ही कीयो, दत दायजो घणा दीया, घणा मनवारांसू दीया, घणा मनवारांसू लीना । हि रांणी पिण छांनो माल प्रापरो बेटीने दीयो, घणी राजी कीवी। दूहा- सहस दाय हैवर दोया, इकवीस गैवर दीध बे। सहस धोरी दूरणा करला, जगमग झूला लोध बे ॥ ३२२ चाकर पंचसय चेरीयां, वलि हथियार विशारन बे। चतुरंगणी लछमी दई, टलीया प्राल पंपाल बे॥ ३२३ ९०. वार्ता-इसा द्रव्य देनै कुवरजीनै सीष दीवी, घणा पासू पाया। माता-पिता घणा रूदन कीना IA - ---------- - - रांणीवाक्यं दुहा- सरवर पाय पषालता, मैरी पायलडी षीस जाय । अंवर तारा गिणता थकाय, मौरी रेण विहाय वै ॥ ६७ वारता- रीसालु राजी हुवो राणीरे घेहेणौ घडावै । राजा राजी हुवो वधाई पाटी। घणा दिन रया । रीसाल् राजा तीरे सीष मांगी। १. २. ३. ये दूहे ख. ग. घ. में नहीं हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत गद्य-पद्यांश का वाक्यभेव ख. ग. ङ. में गद्यरूपमें इस प्रकार मिलता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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