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________________ ११६ ] बात रीसालूरी पालो पाणी पातसाह, चढी उत्तराधि कोर । तोरण वीरीयां धणीयांयति, मोरडोयां ज्यूं झिगोर ।। २२८ प्राभे अडंबर बादली, वीज चमको होय । तिरण वीरीयां कचं कसै, पीवनै राषे नोय ॥ २२६ कोरण उतराधिकरण, धोरंग ची(चो)ली कुवाल । धरणीयां धण साल धणी, वरणीयो इम वरसाल ॥ २३०' ६२. वार्ता-इण भांतरी वरषा रीत वणी छ। तिण समीये छोटी-छोटी बंद पड छै। विजलीयांरो झबको हुवै छै । तकुवरीरो जीव सेणस् विलंधो छै ने कुवरजी कपट-नीद्रांमै सूसाडा करै छ । तठे राणी वडारणने दूहो कहै छ ।२ दूहा- आज सलूणी रातडी, मोही अलूणी होय बे। एकौ कामण सीझीयो, वांदी विधुता जोय बे ।। २३१ रामन रातडीयां तणी, पूरो हौवै पास बे।। तुं मूझ बालापणा तणी, पूरावै मन पास बे ॥ २३२ दासीवाक्यं नीदडीयारो नेहडो, लागो कुंवर सूजांण बे।। अब ठठो (उठो)सै चालो भली रे, रेण अंधारी प्रांरण बे ॥ २३३ चालो मोलीय सेणसू, रावत सूता सू छोड बे। एक घडीमै प्रापरणौ, काज करेस्यां कोड बे ॥ २३४* A६३. वार्ता-इण विध छानेसे वातां करने उठी, सो मेहीलांस उत्तरी। तठे कुंमरजी साहसीक होयने ढाल-तलवारसू कस्या, सो लारे चालीया; लगबग हालीया छै। दुहा सोरठ-ए पाजणी रात, षबर पडैसी मुझ परी। वैरण हंदी वात, षरी मथा ज्यौ षेलरणा ॥ २३५ १. २. २२६ से २३० तकके दूहे तथा ६२वीं वार्ताका गद्यांश ख. ग. घ. उ. प्रतियों में अप्राप्त है। *. २३१वें पद्यसे २३४वें तकके पद्य (दूहा) स्व. ग. घ. ङ. प्रतियोंमें अप्राप्त हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत ६३, ६४, एवं ६५वीं वार्तामोंके गद्यपद्यात्मक अंशोंके वाक्यभेद ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में इस प्रकार मिलते हैं-- ख. रांणी सोनाररा घर दीसा चाली। रसालु पिण ढाल-तलवार लेने रांणी वांसे चाल्यो। रांणी सोनाररे घरे जाय कमाड कुटीयो । रांणी सोनार प्रते काइ कहे छै-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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