________________
बात रीसालूरी
[ ११५ [६०. वार्ता-इसो कुंवरजी कहीयो । तरे कुवरी चूंप करने महिलरे वारणे बेठो, ने रूपी वडारण छ, तिणनै कने वेसांणने कहे छैदूहा- मृगलो सूवो मेनडी, एकरण रे वहे (रेहवे) लार बे।
सो तो हंस रिसावी सो, सरवर वात संभार बे ॥ २२३ भूलै चूंके भोलडी, वयण वटाउं जाण बे। कहिया साहिव किम कीजीय, रीसवि मती य सूजांण बे ।। २२४ हे वांदी या (था) हरा हाथरो, आसरो आज अपार बे।
रातडीयांरी वातडी, निसा समें यार बे ॥ २२५ ६१ वार्ता-इण भांतसूं वडारणसू दूहा कहीया । तठ रीसालू जोइयो जे रातरी वात सासरीयामें गई; तो इण लूगाईरी तो पारष लेणी, पछै वात करणी। इसो विचारने कपट-निडा (द्रा)में सूता छै। इतरा माहे वरषाकालरो मास छ । श्रावणरो महिनो छै । तठे उत्तराधरा पमी(गी, गा)री चाली थकी घटा पाई छ । मोर, पपीया, कोइलां कहुका कीया छै। डंडरिया डरूडरू कर रह्या छ । धरती हरीयों कांचू पहरणरी पास धरी छै ।]
राग मल्हार दूहा- वरषा रीत पावस करे, नदीयां प(ष)लके नीर ।
तिण विरीयां संकलीणीयां, धणीयांस्यू धरयौ सीर ।। २२६ परवाई झीणी फरे, रीछी परवत जाय । तिण विरीयां संकलीणीयां, रहती पीव-गल लाय ॥ २२७
[-]. कोष्ठगत ६० एवं ६१वीं वार्तामोंकी वाक्यरचना ख. ग. घ. ङ. में इस प्रकार
ख. वारता--इसो कहीयो । तरे राणी इसो सांभली पाछी फीरी। तरे रसालु वीचारियो प्रा प्रस्त्री पतीव्रता होसी तो राजलोकमे जासी; नही तर अोर ठीकाणे जासी । इसे समोए थोडो जरमर-जरमर मेह वरसे छ। ___ ग. वात-ऐस्यो रांणी कही परी गई। तदि रोसालु कह्यौ--प्रा यसत्री कसी क छ ? पतीव्रता होसी तो रावलाम जासी; नही तर ओर जायगा जासी। झीरमर-झीरमर मेह वरसै छै । ऐसो त्रीभाव वीण रह्यो छै ।
घ. प्रतिमें इस प्रकारका कुछ भी प्रांश नहीं है।
ङ. वारता- राणी इसो कहिन फेर पाछी गइ। तद रीसालु वीचारीयो-जो प्रा प्रसतरी प्रतीवरता होसी तो राजलोक मांहै जासी; नही तर पोर ठिकाणे जावसी। तिण समै योड़ो-थोड़ो मेह वरसे छ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org