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________________ १९४ ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात कह्यो-हं थारो वर छू। कवरी कह्यो-मोनै परण्यौ तिको कठै ? इण कहीयो-मजूर, चाकर राजां प्रागै काम सदा करै'; राजांरै हुकमसु तो कु वस्तुरो धणी हुइ जाय ? तरै कवरी राता नैणं करि सहेल्यां कनासु चांदणीमै पोटली ज्यु बंधायनै पगथीयांसु गडाय दीधो। तिको गुडतो-गुडतो हेठो आय पडोयो। रजपुत ऊभा त्यां जाण्या-क्यु माल री गांठ पाई। जोवे तो वीद राजा छ । तरै रजपूतां पूछीयौ वीद हुई ज्यु कही। तरे अबोल्या छांना जीव ले न्हाठा। तिके जांनमै आया ने सारी विगतवार बात कही। तरै [नगारो दोयां विना डरता जान चढी आपर। नगर गई। कवरी वात राजा-राणीसु कही। इचरज हूवौ । अबै प्रेमलाल कवरी सचीती सुपना वाली वात जाण । वरस १ वीतो, त? तीज आई । तरै सहेल्यां कह्यौ-बाईजी ! आज तो आप पोसाष वणावो, घुस्याली राषौ । श्री परमैसरजी सहु भला करसी। तरै पारतरौ सिरपाव मंगायौ जब दांनी षोली । प्रागै कोर'ज ऊपरा तंबोलरा आषर छ, तिकै कवरी वांच्या प्रभो नगरी चंद राजा, गिर नगरी प्रेमलालछि । ___संजोगे-संजोग व्याह हवौ, पिण मेलो दईवर हाथ ॥ प्रो दूहो वचायौ, हरष पायौ। जांण्यो—म्हारो परण्यो चंद राजा छ । तरै राजा सुबुलाइ कह्यौ, दूहो वचायो । तरै राजा कह्यौ-पुत्री ! इणरो इलाज कासु करां ? कवरी कह्यौ-हजार १० ऽथ १५ असवार साथे द्यो, परची दीरावो । हु तीरथरो नाम ले, अंभो नगरी जाइ चंद राजासु मिलु। पिण पवर ही नही छै, जीवै छै के नही ? युं कहे राजा हजार पांच-सात सेन्या दीधी । अठासु चाली तिका केईक दीनां अंभो नगरी मुकाम कीयो नै कह्यौ-बाई प्रेमलालछि भरतार-विहूंगी वैरागणि छ । तिका के दिनां अंभो नगरी तिरथा करणनै जायै छै। अंभो नगरीमै सासू, वह रांणी छ। त्यांनै दास्यां मेलि पासीस कहाई । तरै दास्यां गई थी। घणो मनुहार कीधी नै जीमणरो कहीयौ जरै पाछौ कहीयौ-चालस्यां जद थांहरै रौटी जोमस्यां; जरै दिन दस अठ रहिस्यां; सांमोसुत करणौ छै । इयु कहि दासीयांन गढ माहै जांवती 'आ वाती'६ कीधी। गांवरा लोकानें राजाजीरा सर्व समाचार पुछीया। 'जरै लोकां'१° कह्यौ-वरस १ (एक) हुवौ, १. ख. करि । २. ख. वस्तरो। ३. ख. प्रायने । ५. ख. विगत वात। ६. ख. कोष्ठगत पाठ ख. प्रतिमें अप्राप्त है। ६. ख. भलौ। ७. ख. बुलाय। ८, ख. कहायो। - ख. '-' ख. में नहीं है। १०. ख. में अप्राप्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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