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राजा चंद-प्रेमलालछीरी वात
[ १६५ चंद राजारौ' दरसण कीधांन। सासू, वह राज चलावै छै न कहै छैश्रीमहाराजाजी तौ गौसलषांने विराजीया छ। इसी वात सुणनै ऊमराव वेदल थका रहै छ।
अब दासी दोय निजरबाज चतुर थी, त्यांने कह्यौ-राज जीवता-मुवारी षबर राषौ । इसो भांति कहिने षबर करावै। तठे १ महिल राजाजीरो पोढणरौ, तिणरै तालौ जडोयो रहै छै । सांझ पड्यां रांणी जायनै तालौ षोले छ । एक दिन कवरीरी दासोयां सहेल्यारै झूलरा साथे गई महिल माहै । और दासीयां तौ ऊरी पाई । ऐं दौय जणी अलादो छीपनैं रही । रांणी मांहे गई। आलौ षोल, नै पीजरो काढि नै राजानै सुवौ कीनौ छ, तिको डोरो षोलने राजा प्रगट कीनौ । दासोयां किवाड माहे सारा ही चिरत दीठा । तरै राजी हुईराजा जीवतो तौ दोठी छ । तिसै रात पाछिली घडी २ रहो तरै रांणी पाछौ सुवौ करि, पीजरा माहै घालि, पाछौ पाला माहै घालि, तालौ देनै नीचो ऊतरी। तरै तिरण पहिलो दासीया उतर नै 'प्रांगणे आ'यनै कह्यौ-म्हे सुवार कुच करस्यां; तिरणसु थे रीसावस्यो सो आज रोटी म्हे थारै जीमस्यां । इतरौ सुणनै सासू, वह राजी हुई नै तयारी रसोई री करणी मांडी।
दासीयां 'हसतो हसती' ६ कवरीनै प्रायनें कह्यौ दीठी हकीकत सगली मालुम कोन्ही नै म्है जीमण ठहिरायन पाई छा; आज श्री परमेसरजो मनौरथ सफलौ करसी। तिसै सुवो १ पीजरा माहे घालि, डोरो गलै बांधि सहेली कनै छांनी राषीयौ । तिस जीमणनै दास्यां तेडा पाई। तरै कवरी दासो पचास अथवा साठ साथे ले, सुषपाल बैसि गढमै पाई, मिली। भोजन अरोगी जरै दासी कह्यौ-बाईजी साहिब ! वार-बार अंभो नगरी आपरो पधारणो न होइ नै महिल वीठा नहि, तिणसू महिल देषीजै। जीमणसु देषणो भलो छै। कवरी कह्यौ-कासु महिल देषस्यां ? जरै रांणी कह्यौ-दासो साच कहै छे; महिल देष्या चाहोजे । तरै रांणी साथै होय कवरीनै महिल दिषावै छ। पहिली चतुराईसुपीजरामै सुवौ दासी कनै राषीयो छै। महिल देषतां-देषतां दासी बोली-महारांणो ! रावलो' सुहौर बाईजीनै दिषावो । देषां, किसी एक जलस छ । तरै कवरी दासीन रीस कीना-सुहगररौ कासु देषसी ? ऐ महिल देषै न छै । तर रांणी भोली होइ महिलांरौ तालौ षोल्यौ, मांहे गया । देष तो महल मोटो छै । जालि, गोष घणा छ । रांणी, कवरी तो पालासु निजर टाल, महल
१. ख. राजा चंदरौ। २. ख. करावौ। ३. ख. में नहीं है। ४. ख. उतरी। ५. '-' ख. में नहीं है। ६. '-' ख. हसी-हसी । ७. ख. स्यांषपाल । ८. ख. रांवालो।
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