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________________ बात रीसालूरी [ १२७ ७६. वार्ता-तठे राजा मांन घणाई निवारा किया पिण कुवरजी न मांनी । राजा घरे आयो ने रीसाल उज्जेणीने चलीया ।] A तठे देवीर (रे) देहरा माहै जाय उतरीया। नै राजा भोजरो बेटीरे चित्रांमरो आंबो थो, तिणरै सात कैरोयांरी झूबषां नीचे पडोयों दीठो । त? रांणी जाणीयो- 'जै म्हां आयासू झूबषो पडसी; सो कुंवरजी नही आया ने झवषो पडीयो तो अबे कंवरजीस मे कोल कीयो छो-पाप नै पाया तो हु काठ चडसू, तो आज तो वले वाट जोवनी; तै परभाते काठां चडसू।' इसो विचारतां परभांत हुवो । तठे आपरा माता-पितासू मील ने सीष मांग में कौलरो जाब कर नै चहिने नदी उपरे रचाईने ढोलडा घडकीया। दूहा- ढोल धडकै तन दडे (है), विरहीणी सतीया होय । ___ पोउ मोलानो तो मोलै, तो किम दुषीयो कोय ।। २८४ ७७. वात-हिवं कुवरी चह नेडी वासदेव सिलगायो छै; धूवा-धौर लाग रह्या । तठे कुवरजी देहरासू उठेने तिरण वेला तठे प्रावतां धूवौ देषने कुंवरजी कहै-A ख. वारता-इतरो कहे रसालु घोडे असवार हुआ। जद राजा मान कहीयो-दुजी बेटी परणी । तरे रसालु कह्यो-उवा पीण उण सरीषी होसी तीरण वास्ते नही परणां । सोष करी तोहाथी चाल्या। ग. यात-अतरौ कह्यौ पर रोसालु प्रसवार होयनै चाल्या। अतरै राजा मान कह्मामारी दुजी बेटी परणो। जदी रीसालुं कह्यो–उही ज उसी ज होसी। रीसालु चाल्यो उजेणी नगरी राजा भोजरै चाल्यौ। ___. रीसालु असवार हुवा चालवा लागा । जद राजाजी कयौ-मारी वैटी दुजि परणाउ। तद रीसालु कहै-वा पिरण उसी ज हुसी, तिरण वासते ना परणां । तिहाथी चाल्यो रीसालु उजैणी नगरी प्रायो, तिहां राजा भोज राज करे छ। A-A. चिन्हगत अंश का पाठ भेद ख. ग. ऊ. प्रतियों में इस प्रकार प्राप्त है ख. होवे उजेणी नगरीई राजा भोजरी वेटी रसालु परण्या छ, तीका कुवरी रसालुजीरी वाट जोवे छ । गांम। प्रांबा साषे हा छ । कुवरी घणी चीता करे कुवरजी गया नहीं। तरे रांणी काठ चडवाने त्यार हुई छे; तलावरी पाल गई छ। चेह चुणीजे छ। लुगाया सतरा गीत गावे छ । तीण समीए काठरो ढोल वाजे छ। इतरे रसालुजी जाय पहुता । हीवे रसालु सहीररा लोकांने कांई कहे छ ग. प्रागै राजा भोजरी बेटी काठां चढ छ-रीसालु प्रायो मही। प्रतर रीसालु चाल्या प्रावै छ । वाट लोक रीसालुन मोल्या। रसालुं लोकांने पुछ काई कहै-। ङ, मागे राजा भोजरी वेटी काठे चढे छ तरे रीसालू लोकांने पूछ-। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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