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* श्रीः *
बात दरजी मयारामकी
[अथ श्रीमयाराम दरजीरी वात लिख्यते]
बरवै- बंदू नंद गवरिया, गुनपत देव ।
दोजै भेद अछरिया, करहू सेव ॥ १ दोहा- पास डाबीरी अग, वारठ आसै बात।
जग जांणी जोडी जकां, पढे अजे लग पात ॥ २ कवीयरण नै सिधांणने, जोडै कहै परत ।
अमर करै औ प्रांषरा, कवि कथ अमर करत ॥ ३ नीसांणी- ऊकतां डं(ऊ)डी ऊमदा जुगतां हु जाणां ।
उकतां जुगतां प्राणीयां, विरला सम जाणां ।। पाषर सूधा ऊमदा ग्रहणा सोनाणा । कंठ कथीरा काठका दन थोडा जांणां ॥ पहसर पाषर पाघरा वापार पडांणां । पाधरसला दुहडा के दीहर हाणां ॥ बैठा कीकर सो बुधा कव उदम करांगां । मांणीगर म्यारांमकी घर वात घरांणां ॥ मालम होसी मेदनी राणां सुरतांणां।
पाडा पडसी दोहडा जद केहा जांणां ॥ ४ दोहा- पाबूगिर अछ (च)लेसरी, सिध दोय करता सेव ।
चेला नांमै चतुर रिष, गुरको नाम गंगेव ॥ ५ सत त्रेता द्वापुर समै, कोधी तपस्या कोड।
इंद्रायण नै अपच स] रां, जितै रही कर जोड ॥६ १. वारता- आबू मांथै दोय रषेस्वर तपस्या करै । सो गुरको तौ नांम गंगेव रिष, चेलाको नाम चतुर रिष । सतजुग, द्वापरजुग नै त्रेताजुग, तीन ही जुग रषेसर तपस्या करबो कीधा । जतै एक तौ इंद्रायणी नै आठ अपच (छ)रा
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