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बात दरजी मयारामरी
[ १६५ वैकुंठसू प्राय नै रषांने जीमाड नै ग्यांनचरचा सुणनै दहुं वषत वैकुंठ जाती। हमै कलजग आयौ नै कलजुगरौ पवन लागेवा इकौ । जद रषां ईद्रांणीनै अर पाठ ही अपछरांने कह्यौ-हमै मे देहां दूजी धारसां; कलजुगमै अण देहां नहीं रहसां । सो इंद्रायण ! थै नै पाठ ही अपचरां मारी विदगी घणी कीधी; सो थे वर मांगौ सौ थाने मे वर दे नै गुर-चेलौ अलोप होस ।
रिषां वायकदुहौ- कलजुगरो मानै कहर, विजनस लागै वाव ।
रिषां कह्यौ अण देहरौ, परत करां पलटाव ॥ ७ नर-पुरमै रहसां नहीं, वससां सुर-पुरवास । मांग इद्रायण ! वर मुषां, अब तो पूरां प्रास ॥८ इंद्रायण मुष आषीयौ, प्रौ वर मांगां प्राज। नर-पुर माहे नेहसू, मो परणौ माहाराज !॥e आया वचनांमै अबै, चेलौ गुर कर चाव । पालण वचन पधारसी, वले करेवा व्याव ॥ १० एक इंद्रायण रिष उभ, आलूं अपछरां प्राण ।। मांणण सुख मृतलोकमै, जनम लिया घण जाण ॥ ११ चेलो हो ज सूवटौ, गुर दरजी म्यारांम । चेलो काम सुधारणौ, रामबगस उण नाम ॥ १२ भांड्यावस जाहर भुवरण, गहर रसीलो गांम । दुलहै घर अण देसर, जनम लियो म्यारांम ॥ १३ अलवल (र) माहे ऊपनी, जसां इंद्रायण जाय । ज्य लीधौ म्यारै जनम, मुरधररी धर मांय ॥ १४ पाठू अपछर पागलै, भेली रहती भव । जसीयारे हाजर जकै, आळू दासी अब ॥ १५ कसतूरी चंपककली, लवगां नै लाली है। चंदू चमनू चोषली, मझनायक माली ह ॥ १६ कोडसी (धी)स सवलालकै, धजा फरक धाम । जणंकै घर जाइ जसां, नव-पंड राषरण नाम ॥ १७ म्यारोजी मोटा हुआ, दुलही मुरधर देस ।
पनरां वरसां पदमणी, वनो वनी यकवेस ॥ १८ २. वारता- वरसां पनरांमै जसा हुइ, सिवलाल का (य) थकै घरै। जदी रामबगस सूवौ कीरां पकडनै सिवलालनै दीधौ। सौ चार ही वेद बकै (भषे ?)
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