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बात दरजी मयारामरी
ज़द सौ मोहरां दे नै सिवलाल रामबगसनै लीधो । सो जसां कनै रहे, जसांन पढावै | जद जसां वर-प्रापतीक हुई । सबलाल जसांकौ रूप देषनै मनमै उदास हुप्रो - जसरी जोडरौ प्रादमी हीदुसथान में एक ही नजर न आवै । सिवलालकै दलीकी उकीलायत, त ( अ ) ने बावन कलांरौ कांम, कोड रुपियांकी ध (घ) रे नगद मालीत । जणरै पुत्री एक जसां । जदपी रांमबगस सूर्वे कह्यौ - कायथजी ! आप सोच मत करौ । या तो जसां इंद्रायणी छै, आपको घर प्रवीत करणनै जनम लीयो छे । ज्यूं हेमाछ (च) लर्के घर पारबती, ज्यूं जनकराजाके सीता, भीषमकै घरे रुषमणी जनम लीधो, ज्यूं आपके घरे जसां जनमी छे । श्रा एकली नहीं आई है । म्रत- लोकमै यणरी जोडीरौ पुरस हुं हेरनै परणाय देसूं । श्राप सोच मत करो | जद सवलाल रामबगसने कह्यौ - रामबगस ! यूं तो काळ-दरसी छै नै यूं मारै तौ वडो पुत्र छै। यूं भी रांमबगस अवतार छै; सो थांसूं तो काइ बात छांनी नहीं छै । आा लाष रुपीयांकी मालीत छै, सो यण पुत्रीकै नमंत छे । श्राछो जसरी जोडीरी वर, घर [ सं ] भाल नै व्याव कर देजे । हुं तो रावजीकै किलकता - दसाको कांम छै, सो चढूं छू ।
सवलालवायक
जोवन-मद श्राई जसां व्याव करीजै वेग ।
लागौ औ सवलालकै, दिलमैं वडो उदेग ।। १६
३. वारता - सवलाल तो कलकतांने चढीयो नै लारसू जसां रामवगसकै छी (ची) ठी बांधने समाचार लषीयो - 'सिध श्री भांडीयावास वाली वाट मुहगी दसै, प्रातमका आधार मयारांमजी वसै, लवल (र) थी लषावतुं जसांको मुझरौ अवधारसी । रामबगस राज नर्षं प्रायो छै, जीकौ कुरब वधारसी । ठा लायक काम बिंदगी लषावसी । अठी दसाकी आप गाढी षुसीयां रषावसी । षांनपांनको, पंडांको जाबतौ रषावसी । जाबतो तो बलदेवजी करसी पण ताबा - दार तो लषावसी । भरोसादार भला मनंष जीव-जोग साथे लीजो | इंद्र राजाकी कावीद राजा [ हो ] वीजो। आपकी वाट भालां छां । औदवस कदीयां ऊगे, जसीको भाग जागे, अलवल (र) आप प्राय पूगै ।
दुहौ - प्रलवल (र) हुंता ऊडीयौ, चेलौ कर मन चाव ।
गुर-कदमां भेटण गहर, वह आयौ भांड्याव || २० कागद माहे कांमणी, जसीयल लषीया जाब । म्याराजी ! दरसण मनै श्रातुर दीजो श्राव ॥ २१
४. वारता - रामबगस भांडीयावास आयौ । गुर-चेलौ मिलीया । बारै वरसांसू भेला हुआ। रांमबगसके गले कागद पाचौ (छौ) मयारांम लषीयौ ।
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