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________________ [ १५ ] राजकुमार ने जब धाय मां की लड़की से बाहर निकलने के प्रतिबंध की जानकारी चाही तो उसने सच्ची - सच्ची बात कह दी । वह बड़ा दुःखित व कुपित हुआ तथा राजा की अनुपस्थिति में दरीखाने में आ बैठा । ज्योतिषी महाराज से उसकी झड़प होना स्वाभाविक ही था । राजा को पता लगते ही राजकुमार को देश निकाला मिल गया । वह काले घोड़े पर सवार होकर वहां से विदा हुआ। अनेक प्रकार की बाधाओं को झेलता हुआ वह एक नदी किनारे पहुंचा तो उसने अनेकों मुंड पड़े हुये देखे । उन्हें हँसता देख कर वह और भी चकित हो गया । जब उसने इसका भेद जानना चाहा तो उसे पता लगा कि यहां के अगरजीत नामक राजा की राजकुमारी को प्राप्त करने के लोभ में इनकी यह गति हुई है। वह स्वयं अगरजीत के महल तक जा पहुंचा और बाजी खेलने का प्रस्ताव रखा | चौपड़ बिछाई गई। पहले तो राजकुमार हारता गया, उसने अपनी सारी वस्तुयें खो दी । आखरी दांव सिर को बाजी पर लगा देने का था । दोनों में निश्चित लिखा पढ़ी हुई । कुंवर ने इस बार अपनी लघु लाघवी विद्या के सहारे गोरखनाथजी के पासे वहां प्रस्तुत कर दिये । कुंवर जीत गया । राजा सिर देने के पहिले बड़ा दुःखित होकर रानियों से मिलने गया तो राणियों ने राजा को बचाने की युक्ति से राजकुमारी का विवाह रिसालू के साथ कर देने का प्रस्ताव रखा । रिसालू ने उदारतापूर्वक प्रस्ताव को स्वीकार किया; किन्तु जिस लड़की की मनोकामना के फलस्वरूप अनेक राजकुमारों के मुंड धराशायी गये थे, उसे पापिनी समझ कर उसके साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया । दूसरी लड़की केवल दस माह की थी परन्तु रिसालू उसके साथ विवाह करने को राजी हो गया। विवाह के पश्चात् लड़की को अपने साथ ले वहां से विदा हुआ । लघु लाघवी कला से उसने एक हिरण और सुग्गा-सुग्गी के जोड़े को अपनी परिचर्या के लिये पकड़ लिया । वहां से ज्यों ही एक नगर में पहुंचा तो पता लगा कि नगर उजाड़ पड़ा है । किसी राक्षस के प्रातंक से वह नगर खाली हो गया था। रिसालू ने उसे पुनः आबाद करने की दृष्टि से उस राक्षस का वध करने की ठानी । गोरखनाथजी से प्राप्त तलवार से उसने राक्षस को खत्म कर दिया । वहां से भागे हुये लोग पुनः आकर बस गये । नगर पुनः श्राबाद हो गया । समय बीतते-बीतते राजकुमारी ग्यारह वर्ष की हुई । रिसालू का हिरण बाग में चरने का बड़ा शौकीन था । जलाल पाटण के बादशाह हठमल का बाग पास ही पड़ता था। वहां वह प्रायः रात को पहुंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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