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अधिक वजन रखती है कि वह बगसीराम के साथियों की मण्डली में से ही उसका आश्रित कोई कवि रहा होगा ।
२. राजा रीसालू री बात कथा सारांश
एक समय श्रीपुर नगर में शालिवाहन राजा राज्य करता था। उसके स्वर्गवास होने पर समस्तकुमार गद्दी पर बैठा। उसके सात रानियां थीं, किन्तु पुत्र एक के भी नहीं था। इस कारण राजा चिन्तित रहता था। ___ एक बार वह सूअर की शिकार खेलने के लिए निकला। शिकार का पीछा करते करते रात पड़ गई । उसने वहीं जंगल में ही ठहरने का निश्चय किया। वहां से कुछ दूर एक पहाड़ी पर प्राग जलती हुई दिखाई दी। राजा ने इसका पता लगाने को कहा, तब अन्य लोगों की तो हिम्मत नहीं पड़ी किन्तु एक गडरिये ने हिम्मत की और वह पता लगा कर पाया कि वहां कोई सन्यासी तपस्या कर रहा है। जब राजा स्वयं वहां पहुंचा तो उसने देखा कि गुरु गोरखनाथ अांखें बंद किये समाधि में लीन हैं। राजा बहुत देर तक एक पैर पर हाथ जोड़ कर खड़ा रहा, गुरु गोरखनाथ की कृपा हुई। वर मांगने को कहा । राजा ने पुत्र मांगा । गोरखनाथ ने अपनी गुलाब की छड़ी उसे दो और उसे फेंक कर प्राम प्राप्त करने को कहा तथा वह आम किसी रानी को खिला देने से उसके पुत्र पैदा होगा, जिसका नाम रिसालू रखा जाये ऐसा आदेश देकर राजा को विदा किया।
राजा ने ऐसा ही किया। कुंवर तो उत्पन्न हो गया परन्तु ज्योतिषियों ने एक प्राशंका खड़ी करदी। उन्होंने अपनी विद्या के आधार पर पुत्र का जन्म माता-पिता के लिए घातक बताया जिसके निदान-स्वरूप बारह वर्ष तक पुत्र का मुंह वे न देखें, इस प्रकार की व्यवस्था की गई। राजकुमार अलग से धाय मां के द्वारा पाला पोसा जाने लगा।
समय बीतता गया। जब वह ग्यारह वर्ष का हुवा तो आनंदपुर के राजा मान और उज्जैनी के राजा भोज की ओर से कुंवर के शादी के नारियल पाये। कुंवर अभी एक साल तक बाहर नहीं निकल सकता था और नारियल वापिस करना उनकी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल था। इसलिये कुंवर का खांडा मंगा कर नारियल स्वीकार किये गये और राजकुमारियों का विवाह खांडे के साथ कर दिया गया।
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