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शिकार वर्णन -
ताता अपार प्राकृम तुरंग, कृदंत छवि जावत कूरंग । चढि चले प्रोहित रांग चंग, अत बलबीर जोधार अंग || बरण सुभट घाट हैमर बरगाये, प्राषेट रमण कीनौ उपाये । घमसारण चले घरण थाट घेर, बाजंत घाव नीसारण भर || चमकत सेल पाखर प्रचंड, दमकंत ढाल नीसारण दंड । धमकंत घोड़ पुर धरण धज, रमकंत गगन मग चढ़ीये रज ॥
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हलकार प्रोहित कोप कीन, ललकार म्यांन तरवार लीन। पेष्यो क गज धरै अनंड पष, घायो क बाज चीडकली यधक ॥
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युद्ध वर्णम
[ १३ ]
अति जोम पीरोहत कर अपार दमकंत तड़त बाई दुधार ।
कयो क शीस केहरि कराल, फटयों के मांनु तरबूज फाल ॥ ६९ ॥ ( पृष्ठ ६ )
चहूवांण इतै झालो अचल, ऊत राव प्रोहित ऊरड़े ।
वीर हाक-घमच विषम, भुके बंदूकां सो कड (डै ) ।।२६३ ॥
हरणण मांच हैमरांग गरगरण घोषा रवै हूगर । षरगण बाजया ज पाषरां घुज घूरताल धरणधर । orn बंदूकां ठोर गोलियां गिररण गिरण गनगत, रणरण धनस टंकार भरणरण पर तीर भरणंकत || सिंधवां राग समागमरण गरगरण भेर 'बक बज्ये । चीर घाट परचा पड़, विषमं थाट भारथ बजे ॥
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२६४ ॥
इस रचना का लेखक अज्ञात है । परन्तु यह घटना रांगा भीम के समय की है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी रचना १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुई है । उदयपुर को प्रकृतिसुषमा, सहेलियों की बाड़ी तथा राणा भीम के ठाट-बाट का वर्णन कवि ने विशेष रस लेकर किया है जिससे वह स्वयं उदयपुर का निवासी हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं, परन्तु उसने पुरोहित बगसीराम के ऐश्वर्य, शौर्य आदि का वर्णन भी उतनी ही दिलचस्पी के साथ किया है और युद्ध में राणा भीम की राजकीय सेना को उससे हारता हुआ बताया है जिससे यह सम्भावना
( पृ० ३६)
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