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प्रचलित रही है। राज्य सत्ता, धन सत्ता अथवा घराने के बड़प्पन की होड़ को लेकर प्राय: अनमेल विवाह होते रहे हैं। मुगलों में भी यह प्रथा प्रचलित रही है और उसके दुष्परिणाम भी उन्हें भोगने पड़े हैं। जलाल और बूबना की बात इसका उदाहरण है । हीरां जैसी सुन्दरी का विवाह माणिकचन्द जैसे कुरूप व्यक्ति के साथ कर देने से ही हीरां का मन उसके उपयुक्त प्रेमी ढूंढ़ने के लिये विकल हो उठता है और संयोग से बगसीराम जैसे सुन्दर और साहसी नवयुवक के संपर्क में आकर उसे अपना जीवन अर्पण कर देती है ।
कथा को रोचक बनाने के लिये लेखक ने स्थान-स्थान पर गद्य व पद्य में बड़े ही सुन्दर वर्णन किये हैं। इस दृष्टि से उदयपुर नगर, बूंदी, सहेलियों की बाड़ी, हीरां का सौंदर्य व शृंगार, उसके महल की साज-सज्जा, बगसीराम व उसके साथियों का ठाट-बाट तथा प्रेमी युग्म की क्रीड़ानों का वर्णन द्रष्टव्य | कहीं कहीं उक्ति वैचित्र्य भी देखते ही बनता है ।
प्रेम की रात प्रेमियों के लिये प्रायः बहुत छोटी हो जाया करती है। प्रथम मिलन की रात ढलने को हुई है उस समय हीरां की मनोवृत्ति का वर्णन लेखक ने सुन्दर संवादात्मक शैली में किया है । यथा
बगसीराम कहै छै - परभात हूवो, मंदर झालर घंटा बजायो ।
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हीरां कहै छै प्रोहित है छै हीरां कहै छे प्रोहित कहै छै हीरां कहै छै
प्रोहित कहै छै हीरां कहै छै प्रोहित कहै छै
हीरां कहै छै Narend
बालम, परभात नहीं, बधाई बाजै छै । अऊत घर पुत्र जायो । प्यारी, प्रभात हुई, मुरगी बोल रही छे ।
कुकड़ा मिलाप नहीं छे ।
प्यारी, प्रभात हुवौ, चड़ियां बोलै छै ।
बालम, प्रभाति नहीं, यांका माळा में सरप डोल छ । - प्यारी, प्रभात हुवी, चकई चुपकी रही छै । बालम, बोल बोल थाकी भई छै ।
दीपग की जोति मंदी भई छ । तेल को पूर नहीं है ।
- सहर को लोग जाग्यो छै ।
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हीरां कहे छे - कोईक सहर में चोर लाग्यो छ : प्यारो कहे छे
प्यारी, हठ न कीज्ये, अब बहुत कर डेरानै हुकम दीज्ये ।
(पृष्ठ २६ ) संपूर्ण बात में गद्य का प्रयोग बड़ी काव्यात्मक शैली के साथ किया गया है । उसमें लय के साथ साथ तुकान्तता भी है, जिससे उसे पढ़ते समय काव्य कासा आनंद आता है । इस द्रष्टि से एक उदाहरण यहां दिया जाता है
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