________________
[ १० ]
क्षण असह्य हो उठे। दूसरे ही दिन राणा भीम को ज्यों ही पता लगा कि कोई विलक्षण व्यक्ति अपने दलबल सहित सहेलियों की बाड़ी में ठहरा हुआ है, तो उन्होंने मिलने की इच्छा प्रगट की। जगमंदिर में दोनों का मिलना हा । राणा ने जब नमस्कार किया तो पुरोहित ने केवल राम राम कह दिया और आशीर्वाद आदि न दिया। राणा ने क्रुद्ध होकर इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं अनमी हूं और रघुवंश तथा नरवर के शासकों के अलावा किसी को नमन नहीं करता । महाराणा ने उसके अनमीपने के औचित्य को स्वीकार किया परन्तु जब उसने साधारण ब्राह्मण न होकर तलवार के बल पर खेलने वाला योद्धा अपने आपने को कहा और इसी संदर्भ में परशुराम के द्वारा २१ बार क्षत्रियों का विध्वंस करने की बात आई तो फिर बात बढ़ गई। राणा ने उसके दल-बल को देख लेने की चुनौती तक दे दी। पुरोहित ने अपने डेरे पर लौट कर शिवलाल धाभाई को सारी बात कही। धाभाई ने किसी प्रकार की परवाह न करने को कहा और अपनी सहायता के लिये फौरन अपने पगड़ी बदल भाई सिवाने के राव बहादुर को चुने हुए योद्धाओं के साथ सहायतार्थ पाने के लिये लिखा। राव बहादुर आ पहुंचा।
ज्योंही तीज का त्यौहार आया, पुरोहित अपने साथियों सहित अफीम आदि का सेवन कर तीज का उत्सव देखने पीछोले पर एकत्रित हो गए। उधर हीरां भी अपनी सहेलियों के साथ बन ठन कर वहाँ आ पहुंची। सुनिश्चित योजना के अनुसार देखते ही देखते बगसीराम ने हीरां को अपने घोड़े पर बिठाया और वहां से निकल पड़ा। मेले में भगदड़ मच गई और शहर में शोरगुल हो गया। राणा भीम ने पता लगते ही अपनी फौज भेजी। दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ । पुरोहित ने हीरां और उसकी दासी केसर को पहाड़ी को प्रोट में घोड़े से उतार दिया और स्वयं विपक्षियों पर टूट पड़ा। काफी समय तक युद्ध होने पर दोनों पक्षों के अनेक योद्धा मारे गये परन्तु विपक्षियों की क्षति अधिक हुई। पुरोहित हीरां को लेकर अपने निवास स्थान लौट गया। अपने सहयोगियों का प्राभार प्रकट किया और हीरां के सौन्दर्य का निश्शंक होकर उपभोग करने लगा। छहों ऋतुओं में विभिन्न त्यौहारों का आनन्द लूटते हुये अनेकानेक प्रकार की प्रेमक्रीड़ाओं में रत होकर समय व्यतीत करने लगा। कथा का वैशिष्ट्य
यह कथा अनमेल विवाह के दुष्परिणामों को प्रकाश में लाने की दृष्टि से लिखी गई है। हमारे देश में अनमेल विवाह की प्रथा काफी लंबे समय से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org