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________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी [१६ अथ लालस्यंघ दरोगाको बचन लाल दरोगो बोलियो, मछां कर बिमरोड । अवर देस नह छै इसो, जिण ऊप[२] सर जोड ।। १४७ वृछ सरोवर छबि बिमल, परघल झूरत पाहाड । बाग अनेक नदिया वहै, बन छै देस ढाड ।। १४८ रहै जतै उ राजवी, कोट निवाई कीध । सुजस बिजै चहूं दिस सरस, लायेक भुजवल लीध ॥ १४६ १२. बात-कमबेस घोडाको असवार लालस्यंघ दरोगो कहै छ - प्रोहित हेल हमीर ढढाडै देसमैं रहै छ। निरभयगढ़ निवाई गांम छ, देगतेग बरदायक बगसीरांम नाव छ । देस परदेसमै मारको कहावै छै, षाग त्याग अण गंज बीर(व) बजावै छ। सहलियां बाडियांमैं डेरा करवाया छ, उदैपुरकी गवर देषण आया छै। वौहा- सुणत बडारण केसरी, गमण करी गजगत । हीरांनै कहिया हरष, समाचार सरबत ।। १५० प्रोहित आयौ पेमसं, भाग तमीण भाम। जोय तमीणो जोडको, रसियो बगसीराम ॥ १५१ ऐ धलो छिब सयपत, अब देषी पाप । मन वंछित प्रो छ मदन, मन कर करो मिलाप ॥ १५२ आप जोड देष्यौ अबै, राषो प्रोहित रीत । औ बर दीनो गवरज्या, प्यारी करलै प्रीत ।। १५३ प्रालीजो छिब अंगमैं, बर जोडी बाषाण । प्रीत करीजै पदमणी, अवर नहीं अवसाण ।। १५४ प्रोहितजीन होरा कागद लषते दोहा- हीरां मनमैं अति हरष, कागद लिषो प्रबीन । समाचार बिध विध सकल, नागर हेत नबीन ॥ १५५ १३. बारता- केसरी बडारण हीरांका हाथको कागद ले गमण कीनो, राधाकृष्ण षवासका हाथमैं दीनो । केसरी भणै छ, राधाकृष्ण सुणे छ । केसरी बचन दोहा- कहैत बडारण केसरी, राधाकृष्ण सुणंत । मालुम कर माहाराजसुं, तन-मन कागद तंत ।। १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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