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________________ १८ ] Tata बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी प्रथ प्रोहित - हीरांको नैन मिलाप दोहा - मिणधारी छिबतें उछर, प्रोहित प्रेम प्रकास । देष्य हीरांको बदन, हरषत उमंग हुलास ।। १३६ करहुता पाछै करै, हीरां रूप निहार । देषण दो षेडा चढया, अलबेलिया प्रसवार ।। १४० छप्पै - अलेवेलिया असवार यरण बिध देषण श्राई, गजगमन गुसा गहर छोक मदन छत छाई । भाजन ग्रहणां भार पदमणी रूप प्रकासत, कुंनण तन दमकंत बिबध पोसाष बिलासत । चंदमुषी मृगलोचनी, कर कटाछे हीरां कहु, हाव-भाव करि मोहयो रसियो बगसीरांमहु ।। १४१ घोड़ा भड घमसांण पाषरा बगतर पूरा, चोधारा चमकत जबर पग ढाल जंबूरा । जबरायल जोधार छाक मन मछर छाया, अलबेलियां प्रसवार आजै पीछौल आया ॥ वा विचै पिरोहत यंद, बदन तेज अधिको वहे, सुण बडारण केसरी, करे षबरि हीरां कहै ।। १४२ हीरा बचन दोहा - सुण बडारण केसरी, हरिष हीयमैं होत । ऐ धुलो भलै ग्राबियो देषौं बहै देसोत ॥ १४३ मो मन मैं रसियो भवर, लागत प्यारो लोय | यां देष्यो आज मैं जोडी हंदो जोय ॥ १४४ करि गमण ब केसरी, पबरि ल्याव कुस्याल । कवण नाम रहै छै कठै, सांचो कोहो सवाल ।। १४५ ११. बारता - केसरी बडारंणि रूपकी सागर, गुणांकी आगर । श्राधी कह्यां सर जां, पैलाका मनकी पछां । हीरांका वचन सुणि केसरी ध्याई, बगसीरांमकी सवारीकै नजीक आई । प्रोहितने देष्यों, साष्यात कांमदेव पेष्यौं । arein सनमुख प्राय ऊभी, नीलविडंग घोड़ाकी बाग बिलूंबी । केसरी बडारण बचन दोहा - काई नाव क जातिय्या, किण देस किन गांम | ऊदयापुर मैं प्राईया, कहै दीजै किण कांम ॥ १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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