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Tata बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी
प्रथ प्रोहित - हीरांको नैन मिलाप
दोहा - मिणधारी छिबतें उछर, प्रोहित प्रेम प्रकास । देष्य हीरांको बदन, हरषत उमंग हुलास ।। १३६ करहुता पाछै करै, हीरां रूप निहार ।
देषण दो षेडा चढया, अलबेलिया प्रसवार ।। १४० छप्पै - अलेवेलिया असवार यरण बिध देषण श्राई,
गजगमन गुसा गहर छोक मदन छत छाई । भाजन ग्रहणां भार पदमणी रूप प्रकासत, कुंनण तन दमकंत बिबध पोसाष बिलासत । चंदमुषी मृगलोचनी, कर कटाछे हीरां कहु, हाव-भाव करि मोहयो रसियो बगसीरांमहु ।। १४१ घोड़ा भड घमसांण पाषरा बगतर पूरा, चोधारा चमकत जबर पग ढाल जंबूरा । जबरायल जोधार छाक मन मछर छाया, अलबेलियां प्रसवार आजै पीछौल आया ॥ वा विचै पिरोहत यंद, बदन तेज अधिको वहे, सुण बडारण केसरी, करे षबरि हीरां कहै ।। १४२ हीरा बचन दोहा - सुण बडारण केसरी, हरिष हीयमैं होत ।
ऐ धुलो भलै ग्राबियो देषौं बहै देसोत ॥ १४३ मो मन मैं रसियो भवर, लागत प्यारो लोय |
यां देष्यो आज मैं जोडी हंदो जोय ॥ १४४
करि गमण ब केसरी, पबरि ल्याव कुस्याल । कवण नाम रहै छै कठै, सांचो कोहो सवाल ।। १४५
११. बारता - केसरी बडारंणि रूपकी सागर, गुणांकी आगर । श्राधी कह्यां सर जां, पैलाका मनकी पछां । हीरांका वचन सुणि केसरी ध्याई, बगसीरांमकी सवारीकै नजीक आई । प्रोहितने देष्यों, साष्यात कांमदेव पेष्यौं । arein सनमुख प्राय ऊभी, नीलविडंग घोड़ाकी बाग बिलूंबी ।
केसरी बडारण बचन
दोहा - काई नाव क जातिय्या, किण देस किन गांम |
ऊदयापुर मैं प्राईया, कहै दीजै किण कांम ॥ १४६
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