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________________ २०० ) परिशिष्ट १ फूलवतीवाक्यं हइडू न हलावीइं, नयणां भरी म जोय । इण नयणे जे मूआ, फिरी न पावे कोय ॥ २८ हठीयावाक्यं सज्जण दुज्जण सुध करण, प्रथम लगाडी प्रीत । सुष देय । संसारमें, ए नयनू की रीत ॥ २६ फूलवतीवाक्यं नेन की प्रारत बुरी, पर-मुष लग्ग न जाय । भाग लेवे ओरको, अपनो अंग जलाय ॥ ३० हठीयावाक्यं जीव हमारा तें लोया, पंजर भी तू लेय । तो पर तन्न उवारके, षेर फकीरां देय ॥ ३१ फूलवतीवाक्यं मारेगो रे बप्पडा, मृगां हंडे घाव । सैज हमारी पास करे, तो सिर बाहिर धराव ॥ ३२ हठीयावाक्यं मेरा नाम हे हट्ठीया, मेरे हट्ट सुहाय । तुझस्यू पाल करतडां, सिर जाय तो मर जाय ॥ ३३ फूलवतीवाक्यं सिर जातां जोव जायसे, मुझमां किस्यो लुभाय । हो परदेशी पंथीया, घर कुशले क्युं न जाय ॥ ३४ हठीयावाक्यं एज्युं रीसालू रीसालूप्रो, हु हठोसो लाल चउहांण । राषिल वेला जे चरे, मुडसां एह प्रमाण ॥ ३५ ___फूलवतीवाक्यं नेन से सांन ज करी, हाथ बिछाई सेज । हैं रांणी तू राजवी, दोन राणे रेज ॥ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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