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________________ परिशिष्ट १ हठी हठीला हट्टीया, कडि बांधी पक्का प्रांबा वोंणये, काचा तें हि तरवार । निवार ।। ३७ वार्ता - हठियो भोग भोगवीनें कहे छे-जो श्रमने सीष द्यो तो ठिकांणे जावां । त्या फूलवती कहे छे [ २०१ दूहा- जावत जीभें क्यूं कहां, रहो तो सांई वाट | नावें तूं ही उघडस्ये, श्रहे ता रथरा हाट ॥। ३८ हावाक्यं जाकी जासूं लगन है, ता ताके मन रांम | रोम-रोमसें रचि रहें, नही काहुसें कांम ॥ ३६ फूलवतीवाक्यं सेज ऊजरी फूलूं जई, इसी ऊजरी रात | एक ऊजरे पीउ विण, सबी जरी होय जात ॥ ४० हठीयो गयो, ति वा पूंठें रीसालू आव्यो । दूहा - पग दीठा पवंगरा, रोसालू दरबार । कोइ वटाऊ वहि गयो, कोइ रीसायो घर नार ॥। ४१ वार्ता - इम कही ग्राघो रीसालू गयो । त्यानें पालेल पंषी हूं ता, ते बोल्या - दूहा - आठ पंषेरू छ बग, नव तीतर दस मोर । रीसालूरा राजमां चोरी कर गयो चोर ॥ ४२ वार्ता - त्यारें रांगो प्रावी ऊभी रही। रांणी देषोनें रोसालू बोल्योदूहा - किणें प्रांबा भेडीया, किणें छांटया बूंबार । किणें कंचना मांणीया, किणें सेज दीनां भार ॥ ४३ पलंगपट्टी ढालीनां, किण ही दीनां भार । रीसालूरा बागमां, कोण फिरया प्रसवार ।। ४४ फूलवतीवाक्यं में मेरा कंचना मांगीया, में सेजें दीन्हा भार । में प्रांबा झाडीया, में यूंक्या बूंबार ॥। ४५ Jain Education International वार्ता - त्यारें रीसालू फूलवतीनें कहे छे - हवे ए पांन चावीनें नाषो । त्यारें षाटलाना पाइया आगें बलषो पड्यो । त्यारें फूलवती बोली For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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