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________________ २०२ ] परिशिष्ट १ दूहा- रोसालू रीसालुपा, रोसडीयां मर जाय। प्रांबा पक्का रस चुए, कोइ षुणसें न पाय ।। ४६ रीसालूवाक्यं रीस अमारा लाइ बाप, रीस अमारा नाउं । सपर पक्का अंबला, रजक होय तो षांउं ॥ ४७ वार्ता- त्यारें फूलवती कह-रूठा केम बेठा छो। रीसालू कहे छे--- दूहा- अमृतवेलो वावीओ, मृग्गो चरि चरि जाय । ____ो मृगो मारि सोला करू', दिलरी दाझ मिटाय । ४८ वार्ता- त्यारें रीसालू हठीयानो पग लेई पछवाडे चाली नोकल्यो। ति वारे हठोयो सामो चाल्यो आवे छे ! रीसाल पूछे तूं कुण छ रे ? त्यारे हठीयो कहे-तूं कुण छे ? ओ कहे-हू रोसालू । अो कहेहूं हठीओ छ। रीसालू कहे-क्यां जावे छे ? हठीअो कहे -ताहरे घरे जावू छ् । रोसालू कहे-भंडा, इम नथी जाणतो-जे कोई धणी प्रावस्ये ? त्यारे हठीयो कहे दूहा- रेढा सरवर किम रहे, रेढा रहे न राज। __रेढा त्रीया किम रहे, रेढां विणसे काज ॥ ४६ - वार्ता- रोसालू कहे-तूं छे कोण ? हठीयो कहे-हूं गढ गांगलनो रजपूत रोसालवाक्यं दुहा- गढ गांगलरा राजीया, क्यं चल्यो नहीं राय। रीसालूरी गोरीयां, क्युं मांणी घर जाय ॥ ५० रीसालू कहे–मांटी थाजे। दहा- रीसाल बांरण सनाहीयो, करे रीस करार । छेक मंडी छंडीया, निकस्या प्रारो-पार ॥ ५१ वार्ता- हठीयाने मारी मांसनो पावरो भरी घरे ल्याव्यो, राणी करो स्याकमृग मारी लाव्यो छ । त्यारे ओ मांस रांधी, ऊपरथी घो काढी दोवो कीधो, स्याक कोधो। रांणी कहे-राजा, जिमो। राजा कहे-रांणी पहिला तुमें जिमो। त्यारे राणी पहिला षावा बेठी । षातां राजा कहे छ– दूहा- हाय पोउ मुषमें पोऊ, दीवडा बले पीयाय । जीवतडां रस मांगीयो, मूनां न लोधो साय ॥ ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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