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________________ परिशिष्ट १ [ १६६ दूहा- राक्षस रूडां मारीयो, दुष देतो दुनीयांय ! सींधडीई सालिवाहननो, रह्यो रीसालूराय ॥ २० वार्ता- हवे रीसालूई छ महीनानी फूलवती उछेरवाने वास्ते अनेक वन वाव्या । राजा मनवेगें घोडे चडी में जंगलमाथी रोझडीनूं दूध लावो ने पावे। इम करतां बार वरसनी थई। तिण समें हठीयो वणझारो जातिनो रजपूत, वणझारो कसब करतां भाइइं वारयो-तूं क्षित्रीवट करे तो इहां रहे अनें व्यापार करे तो इहाथी नोंकलि । त्यारे हठोयो नोकली ने सोरठ नवलबूं गांम वासो ने तिहां रह्यो। दूहा- सहस प्रांबा सहस प्रांबलो, केइ डोलरीयो जाय । हठीये सेहर वासीयो, नीकी जिहां वनराय ।। २१ वार्ता- तिण समें एक दिन रीसालूई मनमाहिथी नांहनूं मृगनूं बचूं फूलवतीने प्रांणी दी● । राणी साथको गुदरांण करो। त्यारे मृगसूं रांणोने गुदरांण करतां मग मोटो थयो। त्यारें तिहाथी नीकलोने मगलो हठीयानो वाडोना फूल, फल पाइ जाए छे पिण पकडातो नथी । दूहा- माली रावें संचरयो, सांभल हठीया वात । __कोइ गाटेरो मुग्गलो, वाडी चरि चरि जात ।। २२ काला मृग ऊजाडका, फिर फिर पवन भषेय । वाडी हमारी भेलतो, भलकडीयू झालेय ॥ २३ वार्ता- मृगलो हठीयानें कहे छे--मनें स्याने अर्थे घाव करे छ । दूहा- प्रो दीसे प्रांबा अांबली, ओ दीसे दाडिम जाय । बा जायो बेटडो, जो मांणी घर जाय ।। २४ वार्ता- ति वारें हठीओ घोडे चडी तिहां ग्राव्यो । देषे तो वन विचें मेडोयें फूलवतो एकलो बेठी छे । त्यारे हठीयो बोल्यो । दोहा- के तू देवल पूतली, के तू घडी सुनार । किण राजारी कंपरी, किण राजारी नार ।। २५ फूलवतीवाक्यं केड कटारा वंकडा, अंबोडे नव नाग। तिण पुरषांरी गोरडी, पंथीडा मारग लाग ॥ २६ हठीयावाक्यं लागणहारा लागस्ये, दीठडली म दीठ । हइडे टेकण होइ रही, ज्यू कापड चोल मजीठ ॥ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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