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प्यारो, नैणांकों नरषणी नां है छिन न्यारो, मतवालीको मांणग, रसजीणको जांणग । जिंग वागफी छोज जेती, दीठांइ'ज वण आवै कहां केती । वसंत रत फल-फूल रही है, आणंदमइ छे । चंद्रसरोवर छे, तीर माथे घणा तरोवर छे । केतकी, चंबेली, गुलाब, चंपाकी फुलवाद | आंबाकी मंजर, भमरांकी गुंजर |
बांके उपर कोयलां टहुका करै छे, सुवा नीलकंठ मैमंथ हुआ फरे छं, रस भरे छे । मौर मंमंत हुआ निरत करे है, एक-एकसु सिरे है । फुलवादीरी क्यारीयां में ध है, का करें है, गुदीमें गुचा धरे है ।
॥ दूहा ॥
महकै मीठा मोर, कहकै मीठी कोयलां ।
आठ पहर छहुं ओर लपटांणी तरसु लता ॥१९१॥
वात - जण वागमै श्राय उतरीया । रूख सारा रसमंजरासु भरीया | जसां महेलां दाषल वीही, रात घणी श्राणंदसूं गई । दीपक जगायो, सनेह-रस पायौ । साडी जरकसी पर म्यारांमजी दुपटी ओढायौ । भमर कली लपटायौ । हीडोल बाट भूल छै, च्यारू पय डुलै छै । म्यारांम तन जागीया । जसा मन जागी । मदनमाहराजरी नौबत जोर बागी; कमल कलीयां वषसी, भमर गुंजार थागी । हमें सुरजरी भास हुआ, कमलांरी वेकास हुन । तम-दालदरी नास हुनो, जोत प्रकास हु । म्यारामजी पौढ़ी हुआ, दोढी-दस त्यार हुआ। मालूड़ी दारूरी मनुनार कीधी, दोय छक लीधी । मारवाड छा (चा) लणकी ताकीद कोधी । उठासु कसीया चंद सरोवर प्राया । गौडा जाषोडा, पाया, कमरां कसया छे, रंभाका रसीया छे । बेलीयांनू दारू पावे छे, केई जलमै नावे छे, गायणी गावे छे | जद किसतुरी अरज कीधी । जसीयाकै मडसु वधाया ।
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म्यारी लवल देसती, प्रायो जसीयल व्याह ।
गावत बांदी गीतड़ा, लीना कवर बधाय ॥ १६२ ॥
वात - अण तक जांन श्राइ । जांनी सीष पाइ आपो आपके घरां गया ।
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घरा घोड़ा, श्रादमी रह्या । हमें इण तक सुष मांणे छै, इंद्र भी वषांरग छै । नित सकारां जावै छै । असवारी आवे छे । सतषणां महल आकास छाया है, श्राभां वादल भूक प्राया छै । अण देसरी चढती वेसरी पडदा छूटा है, कलाबाका बुटा छं । उग-उग उठा है। चंत्रगारी वणी, सोने में वैडुरज- मणी, कडा, कंठयां, वीटयां, पुणछ्यां सु भरचो, उनालाको प्रवो मंजरीस इ भरयो । मोतीयांको गजरी, फूलां को भारी, गाहडको गाडी रायजादो प्यारौ । दरीयाइको रेजो आछो रंग लागो । सोनेरै कडां मे हीडोल- पाट हीडै छै । इंद्र देष देष भुलै छै । छं ( चं) दणका कपाटका जडीया छै हाटका,
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