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________________ [ ५१ ] गवाष छूटा है वाटका । इण तकरा महलायत वराजे । चवं म्यारांम आसमांनरे चा ( छा) जे । कोक-कलाको प्रवीण वींदराजा सुजाण, रंग-भमर नादांन, चढती जवांन । जसीया कटाच करे है, म्यारांम रो मन हरे । णांरो सुष बषांणे, रात-दन मनछोजी लो जाँणं । म्यारामसा भोगी भमर, जमी आसमान लग भ्रमर । इती वात संपुरण | म्याराँमरी ग्रासीया बुधजीरी कही सं० १९१३ रा मती भद्रवा ब्द ७ । मुद्रित संस्करण में पृ० १६७ ' रेंबत समजै रानमै' दोहा २७; पृ० १७७ 'जेले तुरगां रेशमी' गीत और पृ० १८५, 'वन सघन लसत मनु घन वसाल' छंद पद्धरी १४० ; जो प्रकाशित हुए हैं वे इस नई प्रति में प्राप्त नहीं हैं । उक्त वार्ताओं के अतिरिक्त इसमें तीन परिशिष्ट दिये गये हैं जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है परिशिष्ट १ (क) में राजा रिसालू की बात का जो संक्षिप्त रूप प्राप्त हुआ है, उसे अविकल रूप से यहाँ दिया है और (ख) में इसी 'बात' के केवल जो स्वतन्त्र रूप से दोहे प्राप्त होते हैं वे ही दिये हैं। इन दोहों में राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी भाषा के शब्दों का मिश्रण है जिनका कि भाषा - विज्ञान की दृष्टि से महत्व है । परिशिष्ट २ क. ख. ग. और घ. में विभक्त है । प्रत्येक वार्ता में प्रयुक्त दोहा, कवित्त, कुण्डलियाँ, चोपाई आदि छन्दों के वर्गीकरण के साथ अकाराद्यनुक्रम अलग-अलग दिया गया है । परिशिष्ट ३ में पांचों वातों में पद्य एवं पद्यांश के रूप में उपलब्ध कहावतें, मुहावरे और सूक्तियों का संकलन कर अकारानुक्रम से दिया गया है जो कि शोधविद्वानों के लिए उपादेय होगा । प्रति-परिचय प्रेमकथाओं की प्रतिलिपियाँ अनेक हस्तलिखित संग्रहों में और संस्थानों में बिखरी पड़ी हैं, यहाँ तक कि कई प्रसिद्ध कथाओं की बीसियों प्रतिलिपियाँ तक प्राप्त हो सकती हैं । यहाँ प्रकाशित वातों को यथासाध्य प्रामाणिक रूप देने के लिए मैंने कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतियों का प्रयोग किया है जिनका विवरण इस प्रकार है -- १. बगसीराम प्रोहित हीरों की वात : इसका केवल एकमात्र गुटका राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में है । ग्रन्थ-संख्या ५८६७ है । साइज - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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