SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४ ] पी म्याराजी पोचसो, दुलहा मुरध[र] देस | लाडा थांविण लागसी, निज घर दुसमण नेस ॥ १८८ ॥ सायब प्राज सधावसो, रल-मल गावे रंज । सायब उरतीय जीयसमी, हो मारू हीय हंज ॥ १८६॥ जसां सषीयां परसीया, कमलमकरंद वरसीया । जसां मन उदास हुन, मालकी को को हौं - पित-माता परवार पष, नज भ्राता तजनेस | म्यारा व्याह विनोदसुं तजीयौ अलवर देस ॥ १८६॥ प्रो दुही सुंणीयो, पाचो म्यारांमरं षवास दूही भणीयौ । - सपने ही इण देसर्डे, प्राय न जीवयता । म्याली मांडे मोहसू, श्राया कोस किता ॥ १६०॥ I I जन सारी पडीया, जसां रथ चडीया । मिजलां - मिजलां भांडयावास श्राया, घर्णको छात्रां मद छायो । ग्रहणांकी भललाट, तेजको जललाट । आसाढरौ भांण, रसराग जोण | मगजां मदंध, वोप तेजबंध । श्रोपह दुबाह, बाषारण वाह । कांम की मूरत, रूपकी सूरत । रंगरी रली, रसरी डली । श्राणंदरी गली । माहरी चंद्रमा संजोगणी कै लेष, आसाढरौ भांण बनो जोगणी कैब पेष, तुररैरा तार तुटता, किलंगी सोभ उठता। प्रांषांमें ललायां चुटती, रसरी धारीयां वुठती। डेरांनू अवि छे, भगतण-पातर गावे छे। अलवरकी सहेलीयां देषं छे । इण तक म्यारांम तंबु दाषल हुन । जद जसां जोतसीनूं कह्यो - - जान छ (च) ढणरो तीषौ मोरथ दीजै, मनमांनी नवाजस लीजै । जद जोसी की - जतो वागमं प्रस्थांनी कीजी, परभातको दन नीको छै, सारी सूभ महुरतांको टीको छे । परभातरी दुजी मजल करावी । आज तो डेरा वागमै दरावसी । सिरदार वागनुं वलीया, जसांका मनोरथ फली [या] । वाग आणंद उतरीया, जठै ठोड-ठोड कूंड भरीया । घोडा वडलांरी साप तल बांधीया । सिरदार उतर वागमं श्राया, जाजम गदरा वछवाया । भगतण-पातर गावं छं, चछ (च) लगां मचाने छं । अलवेलीया छैलानां नर है, वयण परस नेत्रां रस वरसे है। तंबु षडा कीया, मोतीयांरा गुछा रेसमरी लड़ां दीया । वागमै मैलायत षडो हुई, इन्द्र की पुरी हुई । चा (छा ) - जाकबाणीया छूटा है, सरदरी पुनमरा चंद उग-उग उठा है। झालरी फहरें हैं, चांदणी चहरे है । कलस झगमग है, अजब जेब जग है । जण महलांमे वराज भमर प्रालीजां रो भूप, गंधरी गेंद, माणींगरांको रूप । चायलांको तुररी, चीनीको हार; प्रांष्यांरो अंजन, प्रातमारौ श्राधार । छोगालो छबीली प्राण I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy