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बात बगसीराम प्रोहित होरांकी
छुटत दड़ी गुलाब छिब, फुलकत ऊर फुर फाव । देवर मुष पर डोलचा, सटकत बहत सताव ॥ ३१४ देषत घुघट ओट दे, बंको द्रगनि बिसाल । लीन बसंत गुलालमें, लसत अंग छबि लाल ।। ३१५ अभैरांम हीरां अवर, हीरां भाभी हेत । षेलत फाग बसंत गुल, लायक फगवा लेत ।। ३१६ रमत फाग बीत्यौ रिसक, संझ्या समय प्रसंग । प्यारीनै प्रोहित कहै, रमस्यां अब रतरंग ।। ३१७ रंग ष्याल रा व्यापगत, रात वष्यात ऊमंत । चंद गिगन ऊडन चमक, संजोगण हुलसंत ॥ ३१८ सुष सज्या संझ्या समय, रंगमहल रस रीत। परमल फूल प्रजंक पर, प्रोहित बैठ पुनीत ।। ३१६
प्रोहित बचन कए बडारणि केसरी, प्यारी महल प्रजंक । रंग रु (लु) टांला राज्येकौ, आज भरे कर अंक ॥ ३२०
केसरी बचन प्यारी राज पधारज्यो, हीरां ईधक हुलास । माणीजै रत रंग महिल, प्रोहित मदन प्रकास ॥ ३२१
हीरां बचन प्यारी चाहत महल पर, जिण रो ईतनो जीव । कहै तोनु किण बिधि कह्यौ, प्रगट अमीण षीव ।। ३२२
केसरी बचन चाहत बेगी इधक चित, जादा कवण जबाब । प्यारी बेगी महल य (म), स्यांमां लाब सताब ॥ ३२३ . बिध बिध कर कहियौ बयण, प्रोहित हेत प्रकार । प्यारी प्राव महल पर, अब बेगी ईण बार ॥ ३२४ बले येम कहियौ बचन, भेटांला कर भावै । महला पदमण माणस्या, ललिता वैगी लावै ।। ३२५ आप पधारीजै अब, जेजै न कीज्ये जोये । वाटा जोवै बालमां, महिला हेत समोय ।। ३२६
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