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________________ [ ४५ बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांको हीरां वचन पिचकारी मो ऊपरै, नांष्यौ भर कर नीर।। षेलत डारयौ ष्यात कर, आष्यां बीच [अ]बीर ।। ३२७ पिचकारी झटकत प्रगट, रटकत प्रोहित राये। अटकी नहै पट ऊतट, सटकत प्रांष दुषाये ॥ ३२८ पिचकारी धारां प्रगट, षटकत आंष दुषेम । लाषां वातां महलमै, आज न आस्यां ऐम ।। ३२६ पिचकारी कत जोर पर, अत डारी भर अंग । प्राज[न] महिलां प्रावस्यां, प्रोहित सेज प्रसंग ॥ ३३० गड गड दड़ी गुलाबकी, प्रीतम जोर प्रकास । अाज नही म्हे अावस्यां, तन दूषत तन त्रास ।। ३३१ गोटत गेंद गुलाबकी, चाली फर हर चोट । पटकी लगी कपोल पर, अटकन धुंघट प्रौट ॥ ३३२ डोली झपटी डाव कर, रपटी पाप (य) गिरीन । जोये बातां अटपटी, कपटी प्रीतम कीन ।। ३३३ कहै दीज्ये तु केसरी, निरमल बात निसा[2]पे । लोभी मैं अोलष लीया, अत कपटी छौ पाप ॥ ३३४ कर गमण तब केसरी, आई महल ऊदार। मन मगेज मुलकत मली, प्रोहित हेत प्रकार ॥ ३३५ प्रोहित बचन कहै बडारण केसरी, प्यारी कठे प्रवीण । गुणसागर गजगरत, ललत काम लव लीण ॥ ३३६ केसरी बच्चन राजतणी वा रायधण, मन कर बैठी मांण । आज न महलां आवसी, रसिया प्रोहित रांण ।। ३३७ पिचकारी लग[गि] पीवकै, सीतल भयौ सरीर । षटकत लोही षेलको, प्रांष्या बीच अबीर ॥ ३३८ कहियो हीरां इम कथन, मंद मंद मुसकात । आज न महलां आवस्यां, रंग न रमस्यां रात ॥ ३३६ कह्यौ बडारण केसरी, हीरां मांण अथाह ।। आप विना नहै आवसी, नाजक घणरा नाह ॥ ३४० ऊतर आयौ प्रांगणे, ऊभो सनमुष आय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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