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________________ [ ३४ ] रुद्रदेव ने देखा कि छोटी आफत से छुटकारा पाने के लिये बड़ी आफत में श्रा फंसे। वह किसी प्रकार रात को वहां से भी भाग निकला और चंदराजा की प्राभोनगरी में आ पहुंचा । वहां राजा की लड़की का स्वयंवर था। कौतूहलवश वह भी वहां जा पहुंचा। संयोग से राजा की लड़की ने वरमाला इसके गले में डाल दी। आनन्द और विलास के साथ वह राजमहलों में रहने लगा। इतना हो जाने पर भी दोनों स्त्रियों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वे चीलें बन कर वहां आ पहुंची और एक दिन रुद्रदेव जब झरोखे में बैठा था तो उसकी आंखें नोंचने के लिये वे उस पर झपटीं। रुद्रदेव भयभीत होकर महल के अन्दर लुढ़क गया। राजकुमारी ने एकाएक इस प्रकार की घबराहट हो जाने का कारण पूछा। पहले तो रुद्रदेव बात छिपाता रहा, परन्तु राजकुमारी के अत्यधिक आग्रह पर उसने सारी बात कह दी। राजकुमारी ने इसका निदान फौरन निकाल लिया। उसने अपने नूपुर उतार कर मंत्र पढ़ा और उन्हें झरोखे में से ऊपर फेंका तो नूपुरों ने बाज का रूप धारण कर दोनों चीलों को मार डाला। रुद्रदेव ने देखा कि इस माया का कहीं अन्त नहीं है। ये औरतें मेरी जान लेकर छोड़ेंगी। अत: बेचारा अपनी जान बचाने के लिये वहाँ से भी रात को भागा । चंद राजा को जब दामाद के चले जाने की खबर मिली तो उसने फौरन सिपाही पीछे भेजे । सिपाहियों से जब रुद्रदेव वापिस नहीं लौटा तो राजा चंद स्वयं मनाने के लिये पहुंचे और इस प्रकार बिना सीख लिये ही रवाना होने का कारण पूछा । रुद्रदेव बेचारा क्या कहता ? परन्तु राजा ने जब अधिक हठ किया तो उसने सारी बात कह सुनाई । इस पर राजा चंद ने कहा-'जब तक हमारे दिन अच्छे हैं, तब तक हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, और फिर बीती बात कहने लगा "मेरी माता और पटरानी प्रभावती इसी प्रकार की मंत्र-विद्या में प्रवीण थीं । वे अपनी विद्या के बल पर मुझे अघोर निद्रा में सुला कर रात्रि को गिरनार के राजा के पास क्रीड़ा करने के लिये पहुंच जाया करती थीं । एक बार मुझे संशय हुआ, तो जिस वट - वृक्ष पर बैठ कर वे जाया करती थीं, उस वट-वृक्ष की खोह में पहले से ही मैं छिप गया और उनके साथ गिरनार जा पहुंचा तथा वहां के रंग-ढंग देख कर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। कुछ दिन बाद ही गिरनार के राजा की लड़की प्रेमलालछी का विवाह होने वाला था। उसमें इन दोनों को भी आमन्त्रित किया गया था। अतः विवाह की रात को मैं इनके साथ गिरनार पहुंचा। बरात बड़ी साज-सज्जा से आई थी। किन्तु दूल्हा बड़ा कुरूप था। अतः उन्होंने यह युक्ति निकाली कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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