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________________ [ ३३ ] गायों के आने का समय हो गया है । बछड़ा कहीं चूंग न जाय, इसका तुम ध्यान रखना। थोड़ी देर में बच्चा रोने लगा तो रुद्रदेव ने बच्चे को खिलाना शुरू किया किन्तु इतने में गायें आ गईं। अतः बच्चे को पालने में छोड़ कर बछड़े को बांधने लगा। उसी समय दोनों बहुवें पानी भर कर आ गईं। छोटी बह ने देखा कि बच्चा पालने में रो रहा है, और वह बड़ी के काम में संलग्न है। ईर्ष्या के वशीभूत उसने ऐसे पति को मार देने का निश्चय कर अपनी इंदुरी उसकी ओर फेंकी जिससे वह सांप बन कर रुद्रदेव को डसने के लिये भागा। बड़ी बहू यह देखते ही सारी बात भांप गई। उसने अपने हाथ की लोटी सांप पर फैकी, . सो लोटी नौलिया बन गई और उसने सांप को मार डाला। यह देख कर भोला राजपूत बड़ा भयभीत हुआ और मन ही मन वहां से निकल भागने की तरकीब सोचने लगा। औरतें इससे ज्यादा होशियार थीं, इसलिए उन्होंने आपस में विचार किया-अब यह अपने कब्जे में रहने वाला नहीं है इसलिये इसे गधा बना कर रखा जाय। रुद्रदेव अपनी स्त्रियों से पिंड छुड़ाने के लिये विदेश में कमाई के लिये जाने को उनसे कहता, किन्तु वे नहीं मानतीं। अन्त में उन्होंने प्रसन्न होकर, भाता साथ में देकर सीख दी। रुद्रदेव मन ही मन बड़ा खुश हुआ और बड़ी तेजी के साथ वहां से चला । करीब दस कोस पर पहुंचा तो उसे एक तालाब दिखाई दिया। वहां हाथ-मुंह धोकर कलेवा करने का विचार कर ही रहा था कि इतने में एक ढोली वहां आ पहुंचा और उसकी याचना पर अपने कलेवे में से एक लड्डू उस ढोली को दे दिया । ढोली बहुत भूखा था, इसलिये फौरन ही वह लड्डू खा गया। लड्डू खाते ही वह गधे के रूप में परिवर्तित हो गया और तत्काल रेंकता हुआ उलटे पैरों रुद्रदेव के घर जा पहुंचा। इधर जब रुद्रदेव ने यह करामात देखी तो स्त्रियां कहीं पीछे न आ पहुंचें, इस भाव से आतंकित तीनों लड्डू जल में फैक कर, वह भाग खड़ा हुआ। स्त्रियों ने जब गधे को पुरुष बनाया तो वह ढोली निकला। अपनी योजना की विफलता ज्यों ही उनके समझ में आई वे घोड़ियां बन कर वहां से रुद्रदेव के पीछे भागीं। रुद्रदेव देवगढ़ नगर में पहुंचा ही था कि दोनों घोड़ियें उसके समीप मा पहुंची । जान बचाने के लिये वह बेचारा एक अहीरन के घर जा पहुंचा। पहले तो अहीरन ने उसे डांटा, परन्तु जब उसने सारी बात सच-सच बताई तो अहीरन बड़ी प्रसन्न हुई और उसने रुद्रदेव से वचन मांगा कि वह उसके घर में रहेगा। रुद्रदेव ने स्वीकार किया । अहीरन नाहरी बन कर घोड़ियों पर झपटी और उन्हें बहुत दूर तक भगा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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